२१ जून को हिन्ढी के वरिष्ठ जनवादी आलोचक शिवकुमार मिश्र हमारे बीच नहीं रहे. उन्हें जसम की श्रद्धांजलि
पिछले एक दशक से जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हिंदी के वरिष्ठ आलोचक और प्राध्यापक डॉ. शिव कुमार मिश्र के निधन पर जन संस्कृति मंच हार्दिक शोक संवेदना व्यक्त करता है। प्रगतिशील जनवादी साहित्य और वैचारिकी पर चौतरफा हमले के दौर में पिछले दो दशक में उन्होंने जनवादी लेखक संघ की कमान संभाल रखी थी। 2003 में जलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने से पहले 1992 से लेकर 2003 तक वे जलेस के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे।

साहित्य के सत्ता केंद्र दिल्ली से शिवकुमार मिश्र की प्रायः दूरी ही बनी रही। 1976 में उनकी पुस्तक ‘मार्क्सवादी साहित्य चिंतन: इतिहास तथा सिद्धांत’ पर उन्हें सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार मिला था। साहित्य चिंतन की यह एकमात्र किताब है, जिस पर किसी को यह पुरस्कार मिला। उनकी प्रसिद्ध आलोचनात्मक कृतियों में ‘नया हिंदी काव्य’, ‘यथार्थवाद’, ‘प्रगतिवाद’ , ‘प्रेमचंद: विरासत का सवाल’, ‘रामचंद्र शुक्ल और आलोचना की दूसरी परंपरा’, ‘दर्शन, साहित्य और समाज’, ‘साहित्य और सामाजिक संदर्भ, ‘मार्क्सवादी साहित्य चिंतन: इतिहास और सिद्धांत’, ‘भक्ति काव्य और लोकजीवन’, ‘मार्क्सवाद देवमूर्तियां नहीं गढ़ता’ आदि मुख्य हैं। शिवकुमार मिश्र एक अच्छे वक्ता थे और साहित्यप्रेमियों के साथ साथ विद्यार्थियों में भी काफी लोकप्रिय थे। शिवकुमार मिश्र जी को जन संस्कृति मंच की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि!
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