Friday, March 14, 2014

मार्क्स सर्वोपरि क्रांतिकारी थे : फ्रेडरिक एंगेल्स



कार्ल मार्क्स की समाधि पर भाषण

मार्क्स-एंगेल्स
14 मार्च को तीसरे पहर, पौने तीन बजे, संसार के सबसे महान विचारक की चिंतन-क्रिया बंद हो गई। उन्हें मुश्किल से दो मिनट के लिए अकेला छोड़ा गया होगा, लेकिन जब हम लोग लौट कर आए, हमने देखा कि वह आरामकुर्सी पर शांति से सो गए हैं- परंतु सदा के लिए। 

इस मनुष्य की मृत्यु से यूरोप और अमरीका के जुझारू सर्वहारा वर्ग की, और ऐतिहासिक विज्ञान की अपार क्षति हुई है। इस ओजस्वी आत्मा के महाप्रयाण से जो अभाव पैदा हो गया है, लोग शीघ्र ही उसका अनुभव करेंगे। 

जैसे कि अब प्रकृति में डार्विन ने विकास के नियम का पता लगाया था। उन्होंने इस सीधी-सादी सचाई का पता लगाया- जो अब तक विचारधारा की अतिवृद्धि से ढकी हुई थी- कि राजनीति, विज्ञान, कला, श्रम आदि में लगने के पूर्व मनुष्य-जाति को खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना और सिर के ऊपर साया चाहिए। इसलिए जीविका के तात्कालिक भौतिक साधनों का उत्पादन और फलतः किसी युग में अथवा किसी जाति द्वारा उपलब्ध आर्थिक विकास की मात्रा ही वह आधार है जिस पर राजकीय संस्थाएं, कानूनी धाराएं, कला और यहां तक कि धर्म संबंधी रचनाएं भी विकसित होती हैं। इसलिए उसके ही प्रकाश में इन सबकी व्याख्या की जा सकती है, न कि इनसे उल्टा जैसा कि अब तक होता रहा है। 

परंतु इतना ही नहीं, मार्क्स ने गति के उस विशेष नियम का पता लगाया जिससे उत्पादन की वर्तमान पूंजीवादी प्रणाली और इस प्रणाली से उत्पन्न पूंजीवादी समाज, दोनों ही नियंत्रित हैं। अतिरिक्त मूल्य के आविष्कार से एकबारगी उस समस्या पर प्रकाश पड़ा, जिसे हल करने की कोशिश में किया गया, अब तक का सारा अन्वेषण- चाहे वह पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों ने किया हो या समाजवादी आलोचकों ने, अंध-अन्वेषण ही था।

ऐसे दो आविष्कार एक जीवन के लिए काफी हैं। वह मनुष्य भाग्यशाली है, जिसे इस तरह का एक भी आविष्कार करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। परंतु जिस भी क्षेत्र में मार्क्स ने खोज की- और उन्होंने बहुत से क्षेत्रों में खोज की और वह एक में भी सतही छान-बीन करके ही नहीं रह गए- उसमें यहां तक गणित में भी, उन्होंने स्वतंत्र खोजें कीं। 

ऐसे वैज्ञानिक थे वह। परंतु वैज्ञानिक का उनका रूप उनके समग्र व्यक्तित्व का अर्द्धांश भी न था। मार्क्स के लिए विज्ञान एक ऐतिहासिक रूप से गतिशील, क्रांतिकारी शक्ति था। वैज्ञानिक सिद्धांतों में किसी नई खोज से, जिसके व्यावहारिक प्रयोग का अनुमान लगाना अभी सर्वथा असंभव हो, उन्हें किसी भी प्रसन्नता क्यों न हो, जब उस खोज से उद्योग-धंधों और सामान्यतः ऐतिहासिक विकास में कोई तात्कालिक क्रांतिकारी परिवर्तन होते दिखाई देते थे, तब उन्हें बिल्कुल ही दूसरे ढंग की प्रसन्नता का अनुभव होता था। उदाहरण के लिए बिजली के क्षेत्र में हुए आविष्कारोें के विकास-क्रम का और मरसैल देप्रे के हाल के आविष्कारों का माक्र्स बड़े दौर से अध्ययन कर रहे थे। 

मार्क्स सर्वोपरि क्रांतिकारी थे। जीवन में उनका असली उद्देश्य किसी न किसी तरह पूंजीवादी समाज और उससे पैदा होने वाली राजकीय संस्थाओं के ध्वंस में योगदान करना था, आधुनिक सर्वहारा वर्ग को आजाद करने में योग देना था, जिसे सबसे पहले उन्होंने ही अपनी स्थिति और आवश्यकताओं के प्रति सचेत किया और बताया कि किन परिस्थितियों में उनका उद्धार हो सकता है। संघर्ष करना उनका सहज गुण था। और उन्होंने ऐसे जोश, ऐसी लगन और ऐसी सफलता के साथ संघर्ष किया जिसका मुकाबला नहीं है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनका काम, इनके अलावा अनेक जोशीली पुस्तिकाओं की रचना, पेरिस, ब्रुसेल्स और लंदन के संगठनों में काम और अंततः उनकी चरम उपलब्धि- महान अंतराष्ट्रीय मजदूर संघ की स्थापना- यह इतनी बड़ी उपलब्धि थी कि इस संगठन का संस्थापक, चाहे उसने कुछ भी और किया हो, उस पर उचित ही गर्व कर सकता था। 

इस सबके फलस्वरूप मार्क्स अपने युग के सबसे अधिक विद्वेष तथा लांछना के शिकार बने। निरंकुशतावादी और जनतंत्रवादी, दोनों ही तरह की सरकारों ने उन्हें अपने राज्यों से निकाला। पूंजीपति, चाहे वे रूढ़वादी हों, घोर जनवादी, मार्क्स को बदनाम करने में एक दूसरे से होड़ करते थे।मार्क्स इस बस को यूं झटकार कर अलग कर देते थे, जैसे वह मकड़ी का जाला हो, उसकी ओर ध्यान न देते थे, आवश्यकता, से बाध्य होकर ही उत्तर देते थे। और अब वह इस संसार में नहीं हैं। साइबेरिया की खानों से लेकर कैलिफोर्निया तक, यूरोप और अमरीका के सभी भागों में उनके लाखों क्रांतिकारी मजदूर साथी जो उन्हें प्यार करते थे, उनके प्रति श्रद्धा रखते थे, आज उनके निधन पर आंसू बहा रहे हैं। मैं यहां तक कह सकता हूं चाहे उनके विरोधी बहुत से रहे हों, परंतु उनका कोई व्यक्तिगत शत्रु शायद ही रहा हो।

उनका नाम युगों-युगों तक अमर रहेगा, वैसे ही उनका काम भी अमर रहेगा।