Tuesday, June 18, 2013

जनता की रोटी : ब्रेख्त



इंसाफ जनता की रोटी है
वह कभी काफी है, कभी नाकाफी
कभी स्वादिष्ट है तो कभी बेस्वाद
जब रोटी दुर्लभ है तब चारों ओर भूख है
जब बेस्वाद है, तब असंतोष।

खराब इंसाफ को फेंक डालो
बगैर प्यार के जो भूना गया हो
और बिना ज्ञान के गूंदा गया हो।
भूरा, पपड़ाया, महकहीन इंसाफ
जो देर से मिले, बासी इंसाफ है।

यदि रोटी सुस्वादु और भरपेट है
तो बाकी भोजन के बारे में माफ किया जा सकता है
कोई आदमी एक साथ तमाम चीजें नहीं छक सकता।

इंसाफ की रोटी से पोषित
ऐसा काम हासिल किया जा सकता है
जिससे पर्याप्त मिलता है।

जिस तरह रोटी की जरूरत रोज है
इंसाफ की जरूरत भी रोज है
बल्कि दिन में कई-कई बार भी
उसकी जरूरत है।

सुबह से रात तक, काम पर, मौज लेते हुए
काम, जो कि एक तरह का उल्लास है
दुख के दिन और सुख के दिनों में भी
लोगों को चाहिए
रोज-ब-रोज भरपूर, पौष्टिक, इंसाफ की रोटी।

इंसाफ की रोटी जब इतनी महत्वपूर्ण है
तब दोस्तों कौन उसे पकाएगा?
दूसरी रोटी कौन पकाता है?
दूसरी रोटी की तरह
इंसाफ की रोटी भी
जनता के हाथों ही पकनी चाहिए
भरपेट, पौष्टिक, रोज-ब-रोज।

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