Sunday, April 27, 2014

भगाणा की दलित बेटियों के साथ एकजुट हों. सामंती -जातिवादी वर्चस्व को ध्वस्त करें --जन संस्कृति मंच

गैंगरेप की शिकार हरियाणा के भगाणा गाँव की चार लड़कियाँ न्याय की गुहार लगातीं पिछले पन्द्रह दिनों से  जंतर -मंतर सपरिवार धरने पर बैठी हैं .
मासूम लड़कियों की  यौन प्रताड़ना उस गाँव  में कई वर्षों से जारी जातीय उत्पीडन की एक कड़ी  है .  यह अधिक खूंखार और भयानक रूप में खैरलांजी की घटना  की पुनरावृति है .  हक की मांग करने वाले दलितों के खिलाफ अमानवीय हिंसा और बलात्कार किसी एक गाँव के नहीं , बल्कि देश भर  के जागरूक दलितों को डराने और खामोश करने का आजमाया हुआ जातिवादी हथकंडा है .  सामन्ती गुंडों के घृणित इरादों को सरकार , नौकरशाही , पुलिस और न्याय -प्रक्रिया में तक में निहित कठोर जातिवादी पूर्वग्रहों से लगातार बढ़ावा मिलता है . अभी ही आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने त्सुन्दर जनसंहार के सभी अभियुक्तों को बाइज्जत बरी किया है . लक्षमणपुर  बाथे , बथानी टोला , शंकर बिगहा , मियाँपुर ,कुम्हेर , धरमपुरी और ऐसे ही अनगिनत मामलों में हमने जातिवादियों और जनसंहार करने वालों के सामने हमने न्याय प्रक्रिया को मुकम्मल तौर पर घुटने टेकते देखा है . इन सभी मामलों में एक भी अपराधी को सजा नहीं मिली . 
भगाणा गाँव के दलित पिछले दो वर्षों से हिसार से ले कर दिल्ली तक अपने खिलाफ चल रहे आर्थिक-सामाजिक बहिष्कार और उत्पीडन के खिलाफ आन्दोलन करते रहे हैं . लेकिन किसी भी स्तर से उन्हे न्याय की आस नहीं मिली है . उस गाँव के ताकतवर गैर-दलित दलितों को गाँव से बाहर खदेड़ देने पर आमदा हैं , क्योंकि ये भूमिहीन दलित उन जमीनों अपर अपना कब्ज़ा मांग रहे हैं , जो उन्हें कागजी तौर अपर आवंटित की जा चुकी है . बर्बर  यौन हिंसा उनके प्रतिरोध को समाप्त करने का सब से बड़ा और सब से भयानक हथियार है . 
चुनाव के इस दौर में एक तरफ तो सामन्ती -कारपोरेट -फासीवादी ताकतें सीना ठोंक रही हैं , दूसरी तरफ  बुर्जुआ उदारवादी शक्तियां खूंटा गाड़े बैठी हैं . दलित सर्वहारा इन पार्टियों के लिए वोट बटोरने के मशीन जरूर हैं , लेकिन वे जानती हैं कि मनुवादी सत्ता  से गंठबंधन किये बगैर उन्हें कुर्सी हासिल नहीं होगी . इसलिए न्याय की लड़ाई में वे हमेशा दलित-विरोधी दबंग जातियों के पक्ष में खड़ी होती हैं . यहाँ तक कि सामाजिक न्याय और दलित-उत्थान की राजनीति करने वाली पार्टियां भी उनकी कृपा की आकांक्षी होने के नाते उत्पीडन और अन्याय के मामलों में पीड़ितों के  साथ खड़े होने से परहेज करती हैं . मुख्यधारा मीडिया भी पूरी तरह इसी चरित्र के साथ इसी भूमिका में सक्रिय दिखाई देता है . यही कारण है कि दलितों के खिलाफ यौन हिंसा उसके लिए खबर तक नहीं है .
जन संस्कृति मंच भगाणा की दलित बेटियों और सर्वहारा मजदूर-किसानों के साथ नागरिक  एकजुटता को देश में लोकतंत्र और न्याय की रक्षा के लिए सब से अधिक महत्वपूर्ण मानता है . वह ख़ास तौर पर लेखकों -कलाकारों -शिक्षकों और छात्रों से इस लड़ाई में बढ़चढ़ कर हिस्सेदारी करने की अपील करता है . 
वह मांग करता है कि भगाणा के दलितों का बहिष्कार और उत्पीडन तत्काल बंद किया जाए . पीड़ित बेटियों के उत्पीड्कों को गिरफ्तार किया जाये और उन पर समयबद्ध मुकदमा चलाया जाए . साथ ही जान बूझ कर लापरवाही बरतने के दोषी अधिकारियों के खिलाफ अविलंब दंडात्मक  कार्रवाई की जाये .   

जन संस्कृति मंच की ओर से आशुतोष कुमार द्वारा जारी 

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