Saturday, September 14, 2013

इस लेखकीय जिजीविषा को सलाम : मधुकर सिंह से मुलाकात



युवावस्था में



13 सितंबर, आज कथाकार मधुकर जी से मिला। अपने सम्मान समारोह में दिया जाने वाला वक्तव्य उन्होंने लिखवाया, ताकि उसकी छपी हुई प्रति भी उस दिन लोगों को उपलब्ध हो। वे आजकल दूसरों की आवाज नहीं सुन पाते, पर उनकी याददाश्त बिल्कुल दुरुस्त है। उन्होंने एकदम सधे हुए तरीके से एक सहज सा वक्तव्य लिखवाया। जब मैंने उनके एक मित्र का नंबर पूछा, तो उन्होंने थोड़ा रुक रुककर उसे एकदम ठीक ठीक बताया। मेरे सामने ही अपने पोते को कई लिफाफों के साथ पोस्ट ऑफिस भेजा। मालूम हुआ कि उन लिफाफों में कहानियां हैं। उनका वक्तव्य तो समारोह के ही दिन पढ़ा जाएगा, लेकिन उनकी लेखकीय जिजीविषा कमाल की है, यह इस मुलाकात में भी महसूस हुआ। 
मधुकर जी की पत्नी यशोदा जी 
नहर से लेकर मधुकर जी के घर तक का रास्ता सीमेंटेड हो गया है, वे इससे बहुत खुश हैं और सोच रहे हैं कि समारोह के रोज अपने दरवाजे से ही गाड़ी में बैठके आयोजन स्थल तक जा पाएंगे। उन्होंने लगभग 100 मीटर के इस रास्ते का नाम अपनी पत्नी यशोदा जी के नाम पर रख दिया है और उन्होंने तय कर लिया है कि इस रास्ते को मुख्य सड़क से जोड़ने वाली लगभग 200-250 मीटर की जो सड़क भविष्य में बनेगी, उसका नाम मधुकर सिंह पथ होगा।

सोवियत लैंड नेहरु अवार्ड 






राजभाषा विभाग के प्रशस्तिपत्र के ही डब्बे में सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड भी पड़ा हुआ है, जिसके बारे में मधुकर जी द्वारा सुनाया गया किस्सा बहुत चर्चित है कि किस तरह किसी को यह एवार्ड मिला तो उन्होंने कहा कि यह कैसे मिलता है, यह मुझे पता है, अगले साल इसे लेकर मैं दिखा दूंगा और सचमुच उन्हें अगले साल यह अवार्ड मिल गया।
रुक जा बदरा : मधुकर सिंह 
उनका एकमात्र भोजपुरी गीत संग्रह ‘रुक जा बदरा’ लगभग अप्राप्य है। खोजते खोजते एक प्रति मिली, जिसका आवरण और कुछ पन्ने गायब थे। उनके पास अपनी सारी किताबों का सेट भी नहीं है। 
अर्जुन जिन्दा है : मधुकर सिंह 




लेकिन शब्द और भावनाएं सिर्फ किताबों में ही तो नहीं बची रहतीं, जिस तरह शहादत के बावजूद ‘जगदीश कभी नहीं मरते’, उसी तरह मधुकर सिंह इसमें पूरा यकीन रखते हैं कि जो लेखक जनता के लिए लिखेगा वही इतिहास में बना रहेगा, यही तो उन्होंने अपने वक्तव्य के अंत में कहा है। ‘जगदीश कभी नहीं मरते’ कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशित उनका उपन्यास है, जो ‘अर्जुन जिंदा है’ उपन्यास का परिवर्धित संस्करण है, जो दिखाता है कि सामाजिक बदलाव और जुल्म के राज से मुक्ति की जो लड़ाई आजादी के आंदोलन के दौरान लड़ी गई, वह 1947 में खत्म नहीं हो गई, बल्कि वह जारी रही। जगदीश मास्टर और उनके सहयोगियों ने उस लड़ाई को आगे बढ़ाया। 


दस प्रतिनिधि कहानियां : मधुकर सिंह 
समकाल : मधुकर सिंह 
आंचलिक कहानियाँ : मधुकर सिंह 
धर्मपुर की बहु : मधुकर सिंह 
असाढ़ का एक दिन : मधुकर सिंह 
कथा कहो कुंती माई : मधुकर सिंह 

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सहदेव राम का इस्तीफा : मधुकर सिंह 
अगिन देवी : मधुकर सिंह 
माई : मधुकर सिंह 
भिखारी ठाकुर : मधुकर सिंह 
माइकल जैक्सन की टोपी : मधुकर सिंह 

लाखो : मधुकर सिंह 



22 सितंबर को आरा नागरी प्रचारिणी सभागार में मधुकर जी का सम्मान समारोह हो रहा है। भीषण उमस और कई किस्म की व्यस्तताओं के बीच आरा के साहित्यकार इस सम्मान समारोह की तैयारी में लगे हुए हैं। आमंत्रण पत्र छप चुका है, पर वह अंतिम नहीं है। कुछ लोगों का नाम न चाहते हुए भी संपर्क न हो पाने के कारण छूट गया है। हमने खासकर यह कोशिश की है कि वे सारे लोग जो मधुकर जी के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहे हैं, बल्कि इस दौरान समय निकालकर उनके गांव जाकर उनसे मिलते रहे हैं, वे जरूर इस समारोह में शामिल हों। आमंत्रण पत्र छप जाने के बाद हमें सूचना मिली है कि सुभाष शर्मा, रामधारी सिंह दिवाकर, सत्येंद्र कुमार और शिवकुमार यादव भी समारोह में शिरकत करेंगे। अभी पटना से और भी लोग शामिल हो सकते हैं। मधुकर जी ने बताया कि सुभाष जी अभी कुछ ही रोज पहले उनसे मिलकर गए हैं।
हमारी कोशिश है कि अधिकांश लोगों को मधुकर जी के बारे में अपने विचार व्यक्त करने का मौका मिले। बस यह जरूर अपेक्षा है कि जो लोग भी आ रहे हैं, उनके आने की सूचना हमें पहले मिल जाए और अपना वक्तव्य रखते हुए वे दूसरे वक्ताओं की संख्या का भी ख्याल रखें। जो रचनाकार सम्मान समारोह में शामिल होना चाहते हैं, वे सम्मान समारोह समिति के संयोजक जितेंद्र कुमार को मोबाइल नंबर 09931171611 पर इसकी सूचना दे दें, तो हमें समारोह को व्यवस्थित रूप से संचालित करने में सहूलियत होगी।
जिस तरीके से भी इस समारोह की सूचना आप तक पहुंचे उसे आप आमंत्रण ही समझें। आप आएं और मधुकर सिंह के प्रति अपनी भावनाओं को साझा करें।

1 comment:

  1. मधुकर सिंह जी के बारे में जानके नीक लागल ह. एगो लेखक के आउर का चाही ?
    लेखक हमेसा अजर-अमर होला धन दौलत त केहु - कइसहूं कामा ली, जवन काम एगो लेखक ना कर सकेला .

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