Saturday, January 17, 2015

अक्खड़ - फक्कड़ मिजाज के कवि भोला जी की स्मृति को सलाम : बलभद्र


सुधीर सुमन और सुमन कुमार से पता चला कि 15 जनवरी 2015 को आरा में भोला जी की स्मृति में 2 बजे से एक कार्यक्रम आयोजित है। मैं भोला जी के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ । वे हमलोगों के एक प्रिय साथी थे। वे हिंदी और भोजपुरी में कवितायेँ लिखते थे और उनकी पतली सी काव्य- पुस्तिका 'भोला के गोला' की कुछ काव्य-पंक्तियाँ मुझे अब भी याद हैं । वे पान की दूकान पर बैठे-बैठे तुकबन्दियाँ किया करते थे और उन तुकबंदियों में वे कभी सरकार, कभी पुलिस, कभी तथाकथित रंगदारों पर व्यंग्य के जरिये उन की तीखी आलोचना करते थे । 
उनके कुछ स्थायी ग्राहक थे और वे पान के साथ साथ भोला जी की तुकबंदियों के भी मजे लिया करते थे।  मेरे कुछ सहपाठी भी भोला जी के पान के साथ-साथ उनकी तुकबंदियों के मुरीद हो गए थे और बनाही, बिहियां से चलकर वे भोला जी के पान और तुकबंदियों के साथ कॉलेज परिसर में पहुँचते थे  वे एक केंद्र थे। भोला जी सबको उनके नाम से पुकारते थे, सबको जानते थे वे एक ऐसे केंद्र थे जहाँ से हमलोग जान जाते थे कि कौन शहर में है, कौन नहीं है वे मेरे आरा के डेरे पर भी आते थे और कई बार हमलोगों ने साथ- साथ खाना खाया हैं । मेरी माँ और बड़ी माँ सब भोला जी को जानती थी और उनको प्रेम से बैठाती-बतियाती थी| 

भोला जी को मैं 1984 से जानता हूँ तब छात्र संगठन ए. बी. एस. यू. था और जब मैं उससे जुड़ा तो पाया कि इससे और इस तरह के संगठनों और मिज़ाज के लोग भोला जी के पास जाते थे, बतियाते थे और चाय-पान करते थे । भोला जी भाकपा (माले) से जुड़े थे और कई बार जसम के राष्ट्रीय अधिवेशन में भी शरीक हुए थे । वे अक्खड़-फक्कड़ मिज़ाज के आदमी थे और इसी मिज़ाज के कवि भी थे ।
वे कुछ इस तरह के व्यक्ति थे जिनको खासकर वे लोग जो सभ्य- भव्य मन-मिज़ाज वाले थे, पचा नहीं पाते थे। जैसे कि चाय में खैनी मिला कर पी जाना,   जैसे कि जूठ-काँठ के भेद भाव को न मानना जैसे कि लठमार तरीके से अपनी बात कहना ।
वे जिस मिज़ाज के थे, उसी मिज़ाज के साथ हमलोगों के मित्र थे, साथी थे। उनके खिलाये पान की लाली मेरे व्यक्तित्व का अविभाजित हिस्सा हैं । उनकी कविताएं बहुत कलात्मक न होते हुए भी एक आम आदमी की सामाजिक प्रतिक्रिया के तौर पर बहुत मायने रखती हैं 



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