Sunday, October 29, 2017

रमाकांत द्विवेदी रमता के गीत



हो गइले दीवाना
सुरजवा के कारण छैला हो गइले दीवाना
खद्दर पहिर के धइले भेस फकिराना
लाठी सहे, हंटर सहे, लाख-लाख गाली सहे
पुलिस-दारोगा के सहेले तीखे ताना
देखि के जुलुम बैमान अंगरेजवन के
बागी बन के गावेलें आजादी के तराना
चेत-चेत भारत के भाई हो-बहिनिया हो
तोड़ ई हुकूमत सुंदर आइल बा जमाना
कहे रमाकांत राज होई पंचाइत के
जरि जइहें आग में कचहरी अवरू थाना
19.1.1942


विद्रोही

रूढ़िवाद का घोर विरोधी, परिपाटी का नाशक हूं
नई रोशनी का उपासक, विप्लव का विकट उपासक हूं
प्राचीनता की चिता-भस्म से प्रतिमा नई बनाता हूं
नई कल्पना के सुमनों से रच-रच उसे सजाता हूं
मैं तो चला आज, जिस पथ पर भगत गए, आजाद गए
खुदीराम-सुखदेव-राजगुरु-बिस्मिल रामप्रसाद गए
ममता शेष नहीं जीवन की बीत मृदुल अरमान गए
मैं तो आज बना विद्रोही, जग के झूठे मान गए
सिंधु सलिल को क्षार करूं, वह बड़वानल की ज्वाला हूं
शंकर का भी कंठ जला दूं, काल कूट का प्याला हूं
हंसी उड़ाऊं कानूनों की, वह बांका मतवाला हूं
शासन सत्ता की आंखों में सदा खटकने वाला हूं
कठिन पंथ है मेरे आगे, पर इसकी परवाह नहीं
मुझे जरूरत है वीरों की, भयभीतों की चाह नहीं
असंतोष की आग नहीं, यह विप्लव की तैयारी है
आए मेरे साथ कि जिसको सजा मौत की प्यारी है
भस्मसात कर दूं दुनिया को, धूमकेतु का तारा हंू
पल में बरस बहा दूं जग को, प्रलय जलद की धारा हूं
जोश फूंक दूं मुर्दों में, वह महाक्रांति का नारा हूं
दुश्मन दल की ताकत पर आघात कराल करारा हूं
नहीं कल्पना के घोड़े पर बैठ हवाखोरी करता
उससे घृणा असीम, मौत से बिना लड़े ही जो मरता
मैं न हवाई महल बनाता, ठोस काम भाता मुझको
सुलह-बुझारत नहीं सुहाती, लड़ना बस आता मुझको
1943



नई जिंदगी
हम मरते नई जिंदगी पर, तस्वीर पुरानी रहने दे
नस-नस में भरी जवानी है, शमशीर पुरानी रहने दे

तूफान छुपाये कानों को, रुनझुन से बहलाना कैसा
हम झाड़ जिसे आये पथ में, जंजीर पुरानी रहने दे
रे कलम चलाने वाले, अब बेकार सभी कोशिश तेरी
निर्माण हमारे कदमों में, तकदीर पुरानी रहने दे
24.4.1950


गांव के बतकही
गांव-गांव के लोग आज बस इहे बात बतिआवत बा
बीती दुख के समय, जमाना मन लायक आवत बा
उहे बनी मालिक जमीन के, जे हर-फार चलावत बा
अपना हाथे कुटी काटि के भोरे बैल खिलावत बा
उहे बनी मालिक मशीन के चक्का जवन चलावत बा
किसिम-किसिम के चीज बनाके कहां-कहां पहुंचावत बा
अब अइसन अन्हेर ना रही कि केहू खटते खटत मरी
केहू मुफुते बाबू बनि के शान बघारी-मउज करी
11.12.51

किसान
जहवां न उजहल खगड़ा-धमोइया, ओही खेते उपजेला धान
ओही खेते गेहूं-बूंट-रहर-मटरन-जव, ओही खेते गड़ेला मचान
छिछिलेदर फूंटिया सियरवो ना पूछे, बांस नियन मकई के थान
जेकर पसेना बूंन मोती झरि लावेला, सभे के जियावेला किसान
खेतही मड़इया मड़उवे के छाजन, बांसवा के उटुंग मचान
सावन-भदउआ के रतिया भेयावन, लउर लेके सूतेला चितान
सनसन पुरवा के लरहा झटासेला, तबहूं ना जागेला नादान
‘पट’ सेनी ओही आरी करेला सहिलिया, चिहुंकि के फानेला जवान
हंसुआ-खुरुपिया-कुदारी-हर-हेंगा लेके, दिन में करेला घमसान
ठेहा पर चूकामूका बइठेला गंड़ासी लेके, जसही होखेला मुंह लुकान
मंस-डंस, पिलुआ-पताई के ना फिकिर करे, छनकल राखेला बथान
पिछिली पहर लोही लागेले पहिलकी, ओही राति जागेला किसान
जेठ के झरक, झाराझरी चाहे सावन के, माघ के टुसार मारे जान
कवनो जुगुतिये दइब बिलमावे, जनमे से मेहनत के बान
एही रे धरतिया प बाप-दादा रहले, दूधे-दही कइले असनान
कवन कमाई राम, आजु चूक गइलीं कि फुटहा के छछने किसान
जेकरा धरमे चमकत बाटे ईंटा-ईंटा, गछियोले ऊंचे-ऊंच मकान
धरती से बड़ी दूर, बदरियो से ऊपर, चिल्हि अइसन उड़ता विमान
आदिमी के हुकुम बजावेले मशीनिया कि रोजे रोजे बढ़े बिगेयान
कवनि कमाई राम, आजु चूकि गइलीं कि देखि-देखि तरसे किसान
जेकरा धरमे बसे शहर-बजरिया, दिने दिन बढ़ती प शान
जेकरा धरमे अनमन रंग चीजवा से चमचम चमके दोकान
जेकरा धरमे झारि लामी-लामी धोतिया आदमी कहावे बबुआन
कवनि कमाई राम, आजु चूकि गइलीं कि गंवंई में दुखिया किसान
30.7.52


बेयालिस के साथी
साथी, ऊ दिन परल इयाद, नयन भरि आइल ए साथी
गरजे-तड़के-चमके-बरसे, घटा भयावन कारी
आपन हाथ आपु ना सूझे, अइसन रात अन्हारी
चारों ओर भइल पंजंजल, ऊ भादो-भदवारी
डेग-डेग गोड़ बिछिलाइल, फनलीं कठिन कियारी
केहि आशा वन-वन फिरलीं छिछिआइल ए साथी
हाथे कड़ी, पांव में बेड़ी, डांड़े रसी बन्हाइल
बिना कसूर मूंज के अइसन, लाठिन देह थुराइल
सूपो चालन कुरुक करा के जुरुमाना वसुलाइल
बड़ा धरछने आइल, बाकी ऊ सुराज ना आइल
जवना खातिर तेरहो करम पुराइल ए साथी
भूखे-पेट बिसूरे लइका, समुझे ना समुझावे
गांथि लुगरिया रनिया, झुखे, लाजो देखि लजावे
बिनु किवांड़ घर कूकुर पइसे, ले छुंछहंड़ ढिमिलावे
रात-रात भर सोच-फिकिर में आंखों नींन न आवे
ई दुख सहल न जाइ कि मन उबिआइल ए साथी
क्रूर-संघाती राज हड़पले, भरि मुंह ना बतिआवसु
हमरे बल से कुरसी तूरसु, हमके आंखि देखावसु
दिन-दिन एने बढ़े मुसीबत, ओने मउज उड़ावसु
पाथर बोझल नाव भवंर में, दइबे पार लगावसु
सजगे! इन्हिको अंत काल नगिचाइल ए साथी
8.6.53



हरवाह-बटोही संवाद
हरवा जोतत बाड़े भइया हरवहवा कि आग लेखा बरिसेला घाम
तर-तर चूबेला पसेनवा रे भइया कि तनिए सा करिले आराम
चुप रहु, बुझबे ना तेहूं रे बटोहिया कि राहे-राहे धरती के ताल
जइसे चूवे तन के पसेना रे बटोहिया कि ओइसे बढ़े धरती के हाल
हरवा जोतत बाड़े भइया हरवहवा कि सहि-सहि बरखा ले घाम
कबहूं ना भरिपेट खइले करमजरूआ कि झूलि गइले ठटरी के चाम
हरवा जोतत मोरि जिनिगि सिरइली कि हरवा से नान्हें पिरीति
भरी छुधा जिनिगी में कहियो ना खइलीं कि इहे तोरा देशवा के रीति
खेतवा में बोईं ले जे बारहो बिरिहिनी कि लागेला जम्हार लेखा चास
कवना करमवां के चूक भइया हितवा, कि बाले-बचे सूतीं ले उपास
जोत-कोड़ कमती ना गंगा बढ़िअइली कि परुए से भइल ना सुखार
कवना करमवां में चूकलीं रे दइबा, कि तेहू पर रहलीं भिखार
देशवा के नांव लेले भइया हरवहवा, कि देशवा में बड़का के राज
हमनी का भइलीं रामा गुलर के पिलुआ कि बड़का भइले दगाबाज
भइल बाटे तलफी भुंभरिया रे भइया कि हाली-हाली डेगवा बढ़ाउ
बोलिया जे बोलले पिरीतिया के भइया कि छंहरी बइठि बतिआउ
जेठ-बइशाखवा के अइन दुपहरिया कि रोएं-रोएं मार तारे धाह
मोरा लेखे भइया रे, दुनिया उलटली कि तोरा लेखे बबुरी तर छांह
14.8.54

कुंवर सिंह
झांझर भारत के नइया खेवनहार कुंवर सिंह
आजादी के सपना के सिरिजनहार कुंवर सिंह

इतिहास के होला सांपे लेखा टेढ़टाढ़ चाल
कभी सूतेला निहाल, कभी उठेला बेहाल
बढ़ल आपस के फूट, देश हो गइल पैमाल
गांवे-नगरे फएल गइल कंपनी के जाल

मने-मने करत रहन सब विचार कुंवर सिंह
अपना देश खातिर पोसत रहन प्यार कुंवर सिंह

देखत-देखत ढाका-काशी के उजार हो गइल
लंकाशायर-मैनचेस्टर के सुतार हो गइल
अने-धने भरल-पुरल, से भिखार हो गइल
भूखड़ टापू इंगलैंड गुलजार हो गइल

चुपे चुपे होत रहन तइयार कुंवर सिंह
खीसी जरत रहन एंड़ी से कपार कुंवर सिंह

जब अनमोल कलाकार के अंगूठा कटाई
आ, बलाते जब सोहागिनी के जेवर छिनाई
दिने दूपहर सड़क पर जबकि इज्जत लुटाई
अइसन के होइ, करेजा जेकर फाट ना जाई

आंख फार के देखले लूट-मार कुंवर सिंह
कान पात के सुनले हाहाकार कुंवर सिंह

भारत माता के अचक्के में पुकार हो गइल
खीस दबल रहे भीतर से उघार हो गइल
बाढ़ आइल अइसन जोश के, दहार हो गइल
बात बढ़त-बढ़त आखिर में जूझार हो गइल

देशी फउज के बनले सरदार कुंवर सिंह
अपना देश के भइले रखवार कुंवर सिंह

रहे मोछ ना, उ बरछी के नोक रहे रे
तरूआरे अइसन तेगा अइसन चोख रहे रे
कसल सोटा अइसन देह, मन शोख रहे रे
अइसन वीर जनमावल, धनी कोख रहे रे

ओह बुढ़ारी में जवानी के उभार कुंवर सिंह
अलबेला रे बछेड़ा असवार कुंवर सिंह
गइल जिनिगी अनेर, जब निशानी ना रहल
सवंसार के जवान प’ कहानी ना रहल
जिअल-मुअल दूनों एक, जब बदानी ना रहल
छिया-छिया रे जवानी, जबकि पानी ना रहल
हुंहुंकार के सुनवले ललकार कुंवर सिंह
रने वन मचवले धुआंधार कुंवर सिंह

होश बड़े-बड़े वीर के ठेकाने ना रहल
तोप, गोला के, बनूक के कवनो माने ना रहल
केकरो हाथ, गोड़, नाक, केकरो काने ना रहल
लागल एको झापड़, ओकरा तराने ना रहल

छपाछप फेरसु चारो ओर दुधार कुंवर सिंह
नीचे खून के बहवले पवनार कुंवर सिंह
होला ईंट के उत्तर पत्थर से देवे के जबाना
कस के दुशमन से बदला लेवे के जबाना
कभी छिप के, कभी परगट लड़े के जबाना
कभी हटे के, आ, कबहीं बढ़े के जबाना

रहन अइसन फन में खूबे हुंसियार कुंवर सिंह
राते रात करस अस्सी कोश ले पार कुंवर सिंह
अधिकार पा के मुरुख मतवाला हो जाला
रउआ कतनो मनाई, सुर्तवाला हो जाला
देश जागेला त दुनिया में हाला हो जाला
कंपनी का? परलामेंट के देवाला हो जाला

एह विचार के सिखवले बेवहार कुंवर सिंह
जगदीशपुर के माटी के सिंगार कुंवर सिंह

खांव गेहूं चाहे रहे एहूं दूनों सांझे पेट
दान मुटठी खोल के होय, चाहे खाली रहे टेंट
बांह देश के उधारे, चाहे गंगाजी के भेंट
मान कायम रहे, जीवन लीला ले समेट

अस्सी बरिस के भोजपुरी चमत्कार कुंवर सिंह
लक्ष्मीबाई-तंतिया-नाना के इयार कुंवर सिंह
23. 4. 55


टपान
बाटे टपान बस इहे, कदम बढ़ा के चल

आवे दे, का भइल अगर तूफान आ गइल
बिछिली भइल अन्हार में, बरखा बरिस गइल
बिजुरी सुझाई राह, तनि नोंह गड़ा के चल
साथी-समाज ना छूटे, कसिके हंकार ले
के दो गिरे-गिरे भइल, धइले-संभार ले
नइ के उठाउ, अब बा, कान्हा चढ़ाके चल


खेवा-खरच ओरा गइल, चिंता के बात का
पेटे भइल पहाड़ त, शिव के जमात का
हिम्मत न हार, जान के बाजी लड़ाके चल

फाटी कुहेस, सब घरी अन्हार ना रही
फहरी निशान जय के, झुर-झुर पवन बही
जिनिगी के बिपत-बिघिन के, कबड्डी पढ़ाके चल

24.8.56


जिंदा शहीद

अरे नौजवान, तुम्हें क्या बताएं
कि किन मुश्किलों से आजादी ले आए

गजब जुल्म की आधियां चल रही थीं
कयामत की उमड़ी थीं सौ-सौ घटाएं
जमीं धंस रही, आसमां फट रहा
जान पर आ पड़ी, कांपती थीं दिशाएं

मगर हम थे ऐसे कि चट्टान जैसे
अड़े रह गए, ना तनिक डगमगाए

अजब बेरहम हो गई थी हुकूमत
अजब बेबसी का था जालिम जमाना
हम अपने ही घर से बेदखल यूं हुए थे
कि मरघट में भी था न अपना ठिकाना

जो थे गैर, वे तो भले गैर थे ही
जो अपने भी थे, हो गए थे पराए

मिटे जा रहे थे घरों के घिरौंदे
कुटुंब और कबीले छुटे जा रहे थे
मगर एक धुन के हजारों दीवाने
कहीं एक लय पर जुटे जा रहे थे

तमन्ना थी, गोरी हुकूमत मिटा के
गरीबों की देशी हुकूमत बनाएं

सभा चल रही थी, जुलूस चल रहा था
अहिंसा का आदर्श भी चल रहा था
चले जा रहे थे बढ़े डेपुटेशन
सुलह का परामर्श भी चल रहा था

मगर हमने देखा कि बेकार है सब
तो आखिर बगावत का झंडा उठाए

सजा कर के बलिवेदियां अपने हाथों से
सर पे लपेटे कफन हम खड़े थे
फिरंगी उधर था मशीनों के पीछे
इधर शाम में हम निहत्थे अड़े थे

बरसती थी गोली धुआंधार लेकिन
बढ़े पांव हमने न पीछे हटाए

अभी हाथ में चिह्न हैं हथकड़ी के
अभी पांव में बेड़ियों के हैं घट्ठे
कभी देख लेना खुला जब बदन हो
कि हैं बेंत के दाग कितने इकट्ठे

मगर यह न समझो कि हम रो पड़े थे
सदा मौज में हम रहे, गीत गाए

बढ़े जा रहे हों नए टैक्स दिन-दिन
कि लाचार जनता मरी जा रही हो
करोड़ों को रोटी-लंगोटी न हो, पर
अमीरों की थैली भरी जा रही हो

बताओ तुम्हीं नौजवानों, कि ऐसे में
कैसे कोई रह सके चुप लगाए

जहां न्याय नीलाम होता हो खुल कर
जहां रिश्वतों का ही हो बोलबाला
हर आॅफिस जहां डाकुओं का हो अड्डा
औ’ कानून का पिट गया हो दिवाला

थी ऐसी हुकूमत की साया से नफरत
हम ऐसी हुकूमत की धज्जी उड़ाए

29.4.59


नक्सलबाड़ी की जय

चला दमन का चक्र, छेड़ सोता सिंह जगाओ
धरती के भूखे कृषकों तक, राजनीति पहुंचाओ

लाठी-गोली-जेल-सेल से, जनता नहीं डरेगी
छोटी चिनगारी सारे, जंगल को क्षार करेगी

जमींदार-सेठों के टुकड़खोर, तुम्हारी क्षय हो
धरती के बेटों की जय, नक्सलबाड़ी की जय हो

8.8.67


सरकारी हिंसा हिंसा न भवति                                                                                                                          
भुनते रोज गोलियों से सौ-सौ भूखे मजदूर-किसान
भुनते रोज गोलियों से अन्याय विरोधी छात्र-जवान
नारि-पुरुष, बच्चे-बूढ़े तक घेर जलाए जाते हैं
अक्सर गांव-नगर में लंकाकांड रचाए जाते हैं

लेकिन यह सरकारी हिंसा, तो कानूनी हिंसा है
चाहे जितनी गर्दन काटो, सौ फीसदी अहिंसा है

मगर दूसरे उबल पड़ें तो कुल विकास रुक जाते हैं
मिट जाती एकता, देश पर खतरे आ मड़राते हैं
सत्ता के सारे ही भोंपू, पहले से रहते तैयार
गला फाड़ चिल्ला उठते हैं, ‘‘प्रजातंत्र डूबा मझधार’’

4.2.75



धनवान इजाजत ना देगा
जीने के लिए कोई बागी बने, धनवान इजाजत ना देगा
कोई धर्म इजाजत ना देगा, भगवान इजाजत ना देगा

रोजी के लिए-रोटी के लिए, इज्जत के लिए कानून नहीं
यह दर्द मिटाने की खातिर, मिल्लत के लिए कानून नहीं
कानून नया गढ़ने के लिए, जिंदगी की तरफ बढ़ने के लिए
गद्दी से चिपककर फूला हुआ शैतान इजाजत ना देगा

जो समाज बदलने को निकले, बे-पढ़ो में चले, पिछड़ों में चले
फुटपाथ पे सोनेवालों में, और उजड़े हुए झोंपड़ों में चले
कुर्सी-टेबुल-पंखे के लिए जो कलमफरोशी करता है
बदलाव की खातिर सोच की वह विद्वान इजाजत ना देगा

20.4.82


रे कुचाली

थोरे दिनवां ना रे कुचाली, थोरे दिनवां ना
जनाले आपन जारी रे, थोरे दिनवां ना

डाका-चोरी, छीना-छोरी, लूट-मार-हत्यारी रे
सब अबगुन आगर जनमवलस कइसन बाप मतारी रे

लुच्चा-लंपट-लुकड़-पियक्कड़, सबके खातिरदारी रे
दुनिया भर के गुंडन खातिर तोरे घर ससुरारी रे

तोरा घर में अड्डा मारे पुलिस, लंठ, व्याभिचारी रे
निमन सिखावन सीखत होइहें बेटा, बेटी, नारी रे

खल से प्रीति, बैर भल मन से, जनता से बरिआरी रे
देशभक्त पर, जनसेवक पर हमला, निंदा, गारी रे

गांव-जवार, पड़ोसा-टोला सबके दुश्मन भारी रे
जे भी आपन हक पद चिन्हे, कहिदे नक्सलवारी रे

का करिहें बंदूक-रायफल, बडीगार्ड सरकारी रे
तोरा कुल के जरि से कोड़ी पीजल लाल कुदारी रे

4.2.83

अइसन गांव बना दे
अइसन गांव बना दे, जहां अत्याचार ना रहे
जहां सपनों में जालिम जमींदार ना रहे

सबके मिले भर पेट दाना, सब के रहे के ठेकाना
कोई बस्तर बिना लंगटे- उघार ना रहे
सभे करे मिल-जुल काम, पावे पूरा श्रम के दाम
कोई केहू के कमाई लूटनिहार ना रहे

सभे करे सब के मान, गावे एकता के गान
कोई केहू के कुबोली बोलनिहार ना रहे

18.3.83


त हम का करीं
क्रांति के रागिनी हम त गइबे करब
केहू का ना सोहाला त हम का करीं
लाल झंडा हवा में उड़़इबे करब
केहू जरिके बुताला त हम का करीं

केहू दिन-रात खटलो प’ भूखे मरे
केहू बइठल मलाई से नाश्ता करे
केहू टुटही मड़इया में दिन काटता
केहू कोठा-अटारी में जलसा करे

ई ना बरम्हा के टांकी ह तकदीर में
ई त बैमान-धूर्तन के करसाज ह
हम ढकोसला के परदा उठइबे करब
केहू फजिहत हो जाला त हम का करीं

ह ई मालिक ना, जालिम जमींदार ह
खून सोखा ह, लंपट ह, हत्यार ह
ह ई समराजी पूंजी के देशी दलाल
टाटा-बिड़ला ह, बड़का पूंजीदार ह

ह ई इन्हने के कुकुर वफादार ह
देश बेचू ह, सांसद ह, सरकार ह
सबके अंगुरी देखा के चिन्हइबे करब
केहू सकदम हो जाला त हम का करीं

सौ में पंचानबे लोग दुख भोगता
सौ में पांचे सब जिनिगी के सुख भोगता
ओही पांचे के हक में पुलिस-फौज बा
दिल्ली-पटना से हाकिम-हुकुम होखता

ओही पांचे के चलती बा एह राज में
ऊहे सबके तरक्की के राह रोकता
ऊहे दुश्मन ह, डंका बजइबे करब
केहू का धड़का समाला त हम का करीं
30.1.83


भारत जननि तेरी जय हो
(राग वागेश्वरी, झपताल)

भारत जननि! तेरी जय, तेरी जय हो

हों वीर, रणधीर तेरी सु-संतान
तेरी सभी संकटों पर विजय हो

आजाद, अस्फाक, बिस्मिल, खुदीराम
उधम, भगत सिंह का फिर उदय हो

चारू की, राजू की, किस्टा-भुमैया की
जौहर की आवाज गुंजित अभय हो

जनगण हों आजाद, कायम हो जनवाद
सत्ता निरंकुश का अंतिम प्रलय हो
18.2.1984

भटकल गायक
गाव गान कि जन-जन जगे आत्मसम्मान मितवा
अब तू रचे चल जनमन के हिंदुस्तान मितवा

कबले भटक-भटक भटकइब, कब ले गीत अनर्गल गइब
कबले सरस्वती के बेचब वरदान मितवा

कबही वन में रास रचवल, कबही झूठा जगत बतवल
कबही पत्थर पर बलिदान चढ़वल प्रान मितवा

अबले बात न्याय के दूरे, हक जे भेंटल, उहो अधूरे
जेकर ढोल बजवल, डुबा चुकल ईमान मितवा

कब से ग्राह पकड़ले बाटे, फंदा चल देश के काटे
कबले राह चितइब, ना अइहें भगवान मितवा
13.5.84

राजनीति सब के बुझे के बुझावे के परी                                                                                                  राजनीति सब के बुझे के बुझावे के परी
देश फंसल बाटे जाल में, छोड़ावे के परी

सहि के लाखों बरबादी, मिलल नकली आजादी
एहके नकली से असली बनावे के परी

कवनो वंशे करी राज, या कि जनता के समाज
जतना जलदी, जइसे होखे, फरियावे के परी

बड़-बड़ सेठ-जमींदार, पुलिस-पलटनिया हतेयार
सब लुटेरन, हतेयारन के मिटावे के परी

रूस, अमरीका से यारी, सारी दुनिया के बीमारी
अपना देश के एह यारी से बचावे के परी

कहीं देश फिर ना टूटे, टूटल-फूटल बा से जुटे
सबके हक के झंडा ऊंचा फहरावे के परी

सौ में पांचे जहां सुखिया, भारत दुनिया ऊपर दुखिया
घर-घर क्रांति के संदेशा पहुंचावे के परी
25.9.1984


नौजवान भइया

रोजे रोज बटिया हम जोहिले तोहार
नौजवान भइया! देशवा के तूही करनधार

कहिया ले चारों ओर एकता बनइब
कहिया ले जुलुमिन के जुलुम मेटइब
कहिया ले देब नया युग के विचार

कहिया ले जाई अपना देश से बेकारी
कहिया ले छूटी भूखल पेट के बेमारी
कहिया ले सहल जाई महंगी के मार

कहिया ले होई हमनी के सुनवाई
कहिया ले धन के गुलामी मिट जाई
कहिया ले बनी हमनी के सरकार

तूहीं कुछ सोचब, त, सूझी कवनो राह
तू ही कुछ करब त, होई कुछ छांह
तोहरे पर लागल बाटे आसरा हमार
30.4.85

मैं तो नक्सलवादी

मैं तो नक्सलवादी वंदे! मैं तो नक्सलवादी रे
मुझसे तनिक सही ना जाए अब घर की बरबादी रे

लूटे मेरा देश विदेशी जंगखोर साम्राजी
साथ-साथ सामंत रिजाला, पूंजीवाला पाजी
सबके मन सहकाए, जो बैठे दिल्ली की गद्दी रे

खट-खट के खलिहान-खेत में, मिल में और खदान में
मर-मर सब सुख साज सजावे गांव-नगर-मैदान में
दो रोटी के लिए बने वह द्वार द्वार फरियादी रे

भ्रष्टाचार-भूख-बेकारी दिन-दिन बढ़े सवाई
अत्याचार विरोधी को सरकार कहे अन्यायी
यह कैसा जनतंत्र देश में, यह कैसी आजादी रे

मैं तो वंदे! अग्नि-पंथ का पंथी दूर मुकामी
मेरे संगी-साथी ये अंतिम जुझार संग्रामी
रोटी-आजादी-जनवाद हेतु जो करें मुनादी रे

30.4.85


हमनी साथी हईं
हमनी देशवा के नया रचवइया हईंजा
हमनी साथी हईं, आपस में भइया र्हइंजा

हमनी हईंजा जवान, राहे चलीं सीना तान
हमनी जुलुमिन से पंजा लड़वइया हईंजा

सगरे हमनी के दल, गांव-नगर हलचल
हमनी चुन-चुन कुचाल मेटवइया हईंजा

झंडा हमनी के लाल, तीनों काल में कमाल
सारे झंडा ऊपर झंडा उड़वइया हईंजा

बहे कइसनो बेयार, नइया होइये जाई पार
हमनी देशवा के नइया के खेवइया हईंजा
1.5.85



शहीदों का गीत                                                                                                                                             भगत-आजाद- ऊधम का जो फिर अवतार हो जाए
तो बेशक जालिमों का अंत अबकी बार हो जाए

गए गोरे, मगर अंग्रेज काले जड़ जमा बैठे
कोई तदबीर हो, इनका भी बंटाधार हो जाए

जो रोटी और इज्जत चाहते, क्यों कत्ल होते हैं
ये कैसा रोग है, इसका सही उपचार हो जाए

हमें इस जुल्म की बुनियाद से ऐसे निबटना है
कि अगला हर कदम उस पै करारा वार हो जाए
फंसी तूफान में किश्ती हमारे देश भारत की
जवानो! बल लगाओ तुम तो बेड़ा पार हो जाए

14.8.86

                                                                                                                                                           हामार सुनीं

काहे फरके-फरके बानीं, रउरो आईं जी
हामार सुनीं, कुछ अपनो सुनाईं जी

जब हम करींले पुकार, राउर खुले ना केवांर
एकर कारन का बा, आईं समुझाईं जी

जइसन फेर में बानी हम, ओहले रउरो नइखीं कम
कवनो निकले के जुगुति बताईं जी

सोचीं, कइसन बा ई राज, कुछ त रउरो बा अंदाज
देहबि कहिया ले एह राज के दोहाई जी

जवन सांसत अबहीं होता, का-का भोगिहें नाती-पोता
एह पर रउरो तनि गौर फरमाईं जी

अब मत फरके-फरके रहीं, सब कुछ संगे-संगे सहीं
संगे-संगे करीं बचे के उपाई जी

सभे आइल, रउरो आईं, संगे रोईं-संगे गाईं
हम त रउरे हईं, रउरा हमार भाई जी

9.11.86


रोटी के गीत

जगत में रोटी बड़ी महान!

बिन रोटी क्या पूजा-अर्चा-तीरथ-बरत-नहान
छापा-तिलक-जनेऊ-कंठी-माला कथा-पुरान

बिन रोटी सब सूना-सूना घर-बाहर-मैदान
मंदिर-मस्जिद-मठ-गुरुद्वारा-गिरजाघर मसान

रोटी बढ़कर स्वर्ग लोक से, रोटी जीवन प्राण
रोटी से बढ़कर ना कोई देव-दनुज-भगवान

सो रोटी उपजे खेती से, खेती करे किसान
जो किसान का साथ निबाहे, सो सच्चा इंसान

15.6.88

( ये गीत समकालीन प्रकाशन से 1996 में प्रकाशित रमता जी के हिंदी-भोजपुरी गीतों के एकमात्र संग्रह ‘हामार सुनीं’ से लिए गए हैं। )

1 comment:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई!

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