आनंदी प्रसाद बादल की चित्र-प्रदर्शनी
राकेश दिवाकर

07 जून 16 से 12 जून 16 तक पटना ललित कला अकादमी के प्रदर्शनी कक्ष में बादल जी के नए कामों की प्रभावशाली प्रदर्शनी का आयोजित की गई।

उनकी चित्रण शैली में कथ्य का अभाव बुरी तरह से खटकता है। उम्र के इस पड़ाव पर आकर यदि कोई कलाकार दुविधा की इस स्थिति में खड़ा है तो निश्चित तौर पर यह सामाजिक दुविधा है, सामाजिक कन्फ्यूजन है जो उनकी सारी कृतियों को शीर्षकहीन बनाता है। आज कलाकारों का एक बड़ा वर्ग इस कन्फ्यूजन में है, और सच कहें तो अधिकांश युवा कलाकार इस कन्फ्यूजन में हैं। इसकी झलक हम राजनीतिक व आर्थिक स्तर पर भी देख सकते हैं। तीसरी कमी यह है कि इतने वर्षों तक रचनात्मक सक्रियता के बावजूद बादल जी अपनी शैली नहीं बना पाए हैं। विविधता जहां एक तरफ सम्पन्न बनाती है वहीं इसमें सबसे बड़ा खतरा यह भी रहता है कि कलाकार की पहचान नहीं बन पाती और इसकी वजह भी वह कन्फ्यूजन ही है जो उनकी कृतियों को शीर्षकहीन बनाता है और कभी-कभी तो सारहीन भी।
वर्तमान में बादल जी बिहार ललित कला अकादमी के अध्यक्ष भी हैं, ऐसे में उनकी रचना का प्रभाव बिहार की कला पर पड़ना अवश्यंभावी है। उनकी रचना दृष्टि से बिहार की कला अप्रभावित नहीं रह सकती ।

जिस उम्र में और जिस पद पर बादल जी पहुंच गए हैं वहां पहुंच कर प्रदर्शनी व लगातार काम करना बहुत चुनौती भरा हो जाता है। मगर बादल जी ने इस चुनौती को स्वीकार किया है तथा समय के घोड़े के साथ दौड़ने की कोशिश की है। एक तरह से उन्होंने एक जोखिम उठाया है। बिहार के कलाकार जब राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूम मचा रहे हैं वैसे में बादल जी पटना में गड़ कर काम कर रहे हैं, यह वाकई साहस भरा काम है। यह इसलिए भी कि पटना में कोई कला बाजार नहीं है, कोई पेज थ्री नहीं है। इसके बावजूद अगर मंजा हुआ कलाकार इस शहर में प्रदर्शनी करता है तो इसे पटना शहर और बिहार के कला जगत में जान फूंकने की कोशिश के तौर पर भी देखा जाना चाहिए। बादल जी की प्रदर्शनी राज्य के कला जगत में बहुत दिन तक याद रखी जाएगी।
शुक्रिया
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