Monday, September 28, 2015

आरा में कवि वीरेन डंगवाल को श्रद्धांजलि दी गई





नाउम्मीदी भरे समय में वीरेन को उम्मीद का कवि बताया साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों ने


मशहूर कवि वीरेन डंगवाल के निधन पर 28 सितंबर 2015 को आरा में भाकपा-माले जिला कार्यालय के परिसर में शहर के साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों ने एक श्रद्धांजलि सभा की। वीरेन डंगवाल जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे। पांच अगस्त 1947 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में उनका जन्म हुआ था। बरेली के एक काॅलेज में वे हिंदी के प्रोफेसर थे। इसी दुनिया में, दुष्चक्र में स्रष्टा और स्याही ताल उनके प्रकाशित कविता संग्रह हैं। उन्होंने पाब्लो नेरूदा, नाजिम हिकमत और ब्रेख्त सरीखे महान क्रांतिकारी कवियों की रचनाओं का अनुवाद किया था। कैंसर की बीमारी से उन्होंने लंबा संघर्ष किया। अंततः आज सुबह चार बजे उनकी सांसें थम गईं। मृत्यु से एक सप्ताह पहले वे अपनी कर्मभूमि बरेली लौट आए थे। वीरेन डंगवाल को साहित्य अकादमी सम्मान (2004) समेत कई पुरस्कार और सम्मान मिले। उन्होंने कई यादगार संस्मरण भी लिखे। युवा रचनाकारों से उनकी बहुत गहरे आत्मीय रिश्ते थे। उनकी काव्य पंक्तियों पर पोस्टर भी खूब बनाए गए। उन्होंने अमर उजाला का संपादन किया और कई युवा पत्रकारों और रचनाकारों को प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका निभाई।  
उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए जसम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वरिष्ठ आलोचक रामनिहाल गुंजन ने उन्हें आवेगमयी काव्यपरंपरा का कवि बताया। वीरेन डंगवाल की चर्चित कविता ‘राम सिंह’ के हवाले से हत्यारे शासकवर्ग पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि ‘वे माहिर लोग हैं राम सिंह/ वे हत्या को भी कला में बदल देते हैं।’ उन्होंने उनकी कविता की भाषा की खासियतों की चर्चा की तथा कहा कि वे सामान्य विषयों पर असाधारण कविता लिखने वाले कवि थे। वीरेन डंगवाल की ‘कवि’ शीर्षक कविता की पंक्तियां भी उन्होंने सुनाईं- मैं ग्रीष्म की तेजस्विता हूं/ और गुठली जैसा/ छिपा शरद का उष्म ताप/ मैं हूं वसंत में सुखद अकेलापन... 
कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने कहा कि वीरेन डंगवाल की कविताओं को पढ़ते हुए यह अहसास होता है कि वे सामाजिक-परिवर्तन की चेतना के कवि हैं। उनकी कविताओं में जो सामान्य चीजें हैं, वे उपेक्षित जनता की प्रतीक भी हैं। उनकी कविताएं सामान्य लोगों के भीतर की रचनाशीलता को उजागर करती हैं, जिनके बगैर यह दुनिया पूरी नहीं होती। जितेंद्र कुमार ने वीरेन डंगवाल की कविता ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ की पंक्तियों के हवाले से उनकी वैचारिक दृष्टि को रेखांकित किया। 
प्रलेस, बिहार के महासचिव रवींद्रनाथ राय ने कहा कि वीरेन डंगवाल की कविताएं बताती हैं कि जीवन में जो साधारण और सहज है, वही महत्वपूर्ण है। उन्होंने उनकी कविता ‘परंपरा’ का पाठ भी किया। 
जसम, बिहार के अध्यक्ष सुरेश कांटक ने कहा कि वीरेन डंगवाल का जाना एक सदमे की तरह है। उनकी कविताएं अंधेरे में रोशनी दिखाती हैं। उन्होंने वैसी चीजों पर लिखा, जो आम आदमी की जिंदगी से जुड़ी होती हैं। जनपथ संपादक अनंत कुमार सिंह ने कहा कि जनपक्षधर रचनाकारों के लिए वे हमेशा अनुकरणीय रहेंगे। युवा कवि सुमन कुमार सिंह ने कहा कि उनकी कविताओं में हमारी पीढ़ी को अपनी अभिव्यक्ति मिली और हमने उनके जरिए अपने समय को अच्छी तरह समझा। उन्होंने उनकी कविता 'हमारा समाज' का पाठ किया। कवि ओमप्रकाश मिश्र ने कहा कि वीरेन डंगवाल की कविताओं में एक अनोखापन है, जो उन्हें अन्य कवियों से अलग करता है। वे छोटे-मोटे प्रसंगों पर बड़ी कविताएं लिखने वाले कवि हैं। कवि सुनील चौधरी ने कहा कि वीरेन डंगवाल में कविता, जीवन और जनता के प्रति गहरी प्रतिबद्धता नजर आती है। उनकी कविता में बेघर, बेदाना, बेपानी, बिना काम के लोगों के क्षुब्ध हाहाकार के संदर्भ में कही गई पंक्ति ‘घनीभूत और सुसंगठित होनी है उनकी वेदना अभी’ को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि यही वेदना बदलाव का हथियार बनती है और इसी से बदलाव की जिजीविषा पैदा होती है।
चित्रकार राकेश दिवाकर ने वीरेन डंगवाल को आज के नाउम्मीदी भरे समय में उम्मीद का कवि बताते हुए कहा कि पाश और गोरख पांडेय के बाद वही ऐसे कवि हैं, जिनकी कविताओं में हमारे भावों की अभिव्यक्ति मिली, इसी कारण उनकी कविताओं के पोस्टर भी अधिक बनाए गए। माले नेता सत्यदेव ने कहा कि उनकी कविताएं सामाजिक-बदलाव में लगे लोगों को संघर्ष की ताकत प्रदान करती हैं। माले नेता जितेंद्र कुमार सिंह ने वीरेन डंगवाल को जनता की लड़ाइयों का सहयोद्धा रचनाकार बताया। 
संचालन जसम राज्य सचिव सुधीर सुमन ने किया। 
जनवादी लेखक संघ के नगर सचिव रविशंकर सिंह और आशुतोष कुमार पांडेय ने भी वीरेन डंगवाल को श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर दिलराज प्रीतम, मिथिलेश कुमार, राजनाथ राम आदि भी मौजूद थे।

1 comment:

  1. उपस्थित लोगों में से कथाकार अनंत कुमार सिंह केवल जनपथ पत्रिका के संपादक ही नहीं बल्कि जनवादी लेखक संघ , बिहार के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं । आप लगातार उन्हें जनवादी लेखक संघ से अलग कर के दिखलाते हैं ।यह उचित नहीं है ।भविष्य में अगर इसकी पुनरावृत्ति होगो तो मैं उसे आपके जलेस विरोधी रुख के रूप में देखूँगा और रेखांकित करूँगा ।

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