लोकार्पण आयोजन में 1857 का जनविद्रोह और किसानों की जिंदगी का संकट बहस के केंद्र में रहा
आरा: 10 मई 2015
सुरेश कांटक द्वारा कहानी पाठ |
1857 के स्वाधीनता संग्राम के आरंभ के ऐतिहासिक दिवस पर आज स्थानीय तिलक नगर के फिजिक्स स्टडी प्वाइंट में जन संस्कृति मंच की ओर से प्रसिद्ध कथाकार सुरेश कांटक के भोजपुरी कहानी संग्रह ‘अंजोरिया के पीछे’ और नाटक ‘सत्तावन के वीर बांकुड़ा कुंवर सिंह’ का लोकार्पण और उस पर बातचीत का आयोजन हुआ। लोकार्पण आलोचक रामनिहाल गुंजन, कथाकार नीरज सिंह और आलोचक रवींद्रनाथ राय ने किया। संचालन कवि सुमन कुमार सिंह ने किया।
रामनिहाल गुंजन |
सुमन कुमार सिंह |
लोकार्पित पुस्तकों की चर्चा करते हुए रामनिहाल गुंजन ने कहा कि सुरेश कांटक मूलतः कहानीकार हैं। उनकी कहानी ‘नेता जी का बैल’ प्रेमचंद की ‘दो बैलोें की कथा’ से आगे की कहानी है। उन्होंने कहा कि भोजपुरी में अधिक से अधिक राजनैतिक कहानियां लिखने की जरूरत है। कुंवर सिंह के प्रसंग में उनकी राय थी, कि इस विद्रोह को दो साल पहले हुए आदिवासी विद्रोह से भी जोड़कर देखना चाहिए।
नीरज सिंह |
आलोचक रवींद्रनाथ राय ने कहा कि सुरेश कांटक की कहानियां प्रगतिवादी दौर की कहानियों की याद दिलाती हैं। धन का प्रलोभन, बाजार की चमक और खेती को हाशिये पर रखने की परिघटनाओं को इन्होंने बखूबी दर्शाया है। इनमें नागार्जुन-सी जनपक्षधरता है। कुंवर सिंह की लड़ाई किस तरह जनता की लड़ाई थी, इसे इन्होंने अपने नाटक में अच्छी तरह दिखाया है।
अनन्त कुमार सिंह |
कथाकार अनंत कुमार सिंह ने कहा कि खेती-किसानी की संस्कृति को किस तरह कसाई के हवाले कर दिया गया है, इसे इनकी कहानियां बखूबी दर्शाती हैं। कवि सुमन कुमार सिंह ने उनकी कहानियों पर केंद्रित लेख का पाठ करते हुए कहा कि किसान की जिंदगी पर सुरेश कांटक की गहरी पकड़ है। खेती से किसान का मन कैसे फटा है, इसे इनकी कहानियों को पढ़ते हुए महसूस किया जा सकता है।
सुधीर सुमन ने कहा कि कांटक जी ने नाटक की भूमिका में जिन मेहनतकश जातियों की 1857 की लड़ाई में भागीदारी का उल्लेख किया है, उसे नाटक के दृश्यों में भी परिणत होना चाहिए था। वर्तमान दौर में सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति के खतरों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि 1857 की सांप्रदायिक एकजुटता को फिर से हासिल करना वक्त की जरूरत है। आज जरूरी है कि धर्मन और कर्मन की हकीकत को खोजकर सामने लाया जाए। जिस तरह टीवी धारावाहिकों में राजाओं और बादशाहों के बीच की लड़ाई को हिंदू-मुसलमान की लड़ाई के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है, वह इतिहास को विकृत करने की कोशिश है। सांप्रदायिक बोध को बढ़ाने वाले इतिहास से मुक्ति के लिए सचेत प्रयास करना होगा।
कवि सुनील श्रीवास्तव ने व्यवस्थागत जटिलता की और ज्यादा पड़ताल करने की जरूरत पर जोर दिया। कवि अरविंद अनुराग ने कहा कि प्रेमचंद जिस तरह की कहानियां हिंदी में लिख रहे थे उसी तरह की कहानी सुरेश कांटक भोजपुरी में लिख रहे हैं।
राकेश दिवाकर |
भाकपा-माले के नगर सचिव दिलराज प्रीतम ने कहा कि शासकवर्ग ने आम अवाम को जिस खतरनाक मोड़ पर खड़ा कर दिया है, उसके खिलाफ जो जनांदोलन चल रहे हैं, उसके बारे में लिखना ही 1857 को याद करने का सही तरीका होगा।
निर्मोही |
सुमन कुमार सिंह द्वारा जारी
आज |
हिंदुस्तान |
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