Thursday, April 19, 2018

रिटायरमेंट के बाद बनवारी जी ने भोजपुरी में एम.ए. किया था

कवि बनवारी राम को आरा शहर के साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं की ओर से श्रद्धांजलि 


कवि बनवारी राम के निधन पर आरा शहर के साहित्यकारों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। 17 अप्रैल 2018 को देर रात आरा के न्यू प्रकाशपुरी मुहल्ले में उनका निधन हो गया। श्रद्धांजलि देने वालों में वरिष्ठ आलोचक रामनिहाल गुंजन, वरिष्ठ कवि जगदीश नलिन, कथाकार नीरज सिंह, आलोचक रवींद्रनाथ राय, कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार, जनपथ पत्रिका के संपादक अनंत कुमार सिंह, कवि बलभद्र, कवि जनार्दन मिश्र, सुमन कुमार सिंह, अरुण शीतांश, हरेंद्र सिन्हा, सुनील श्रीवास्तव, सुधीर सुमन, सुनील चौधरी, आशुतोष कुमार पांडेय, चित्रकार राकेश दिवाकर, कवि रविशंकर सिंह, रंगकर्मी श्रीधर, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ता दीनानाथ सिंह और दिलराज प्रीतम आदि प्रमुख हैं। 

बनवारी राम के सहज और मिलनसार स्वभाव को सबने शिद्दत से याद किया। रामनिहाल गुंजन ने बताया कि बनवारी राम बिहार सरकार के सहकारिता विभाग में अंकेक्षक की नौकरी करते थे। गंभीर पाठक थे और उनकी पाठकीय अभिरुचि में पर्याप्त वैविध्य था। नौकरी के दौरान जब पटना में थे तब वहां की और जब आरा लौटे तो आरा की साहित्यिक गोष्ठियों में उनकी अनिवार्य उपस्थिति रहती थी। वे भोजपुरी की अपनी कविताओं का संग्रह छपवाना चाहते थे, पर उनकी वह इच्छा अधूरी रह गई। बलभद्र के अनुसार भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका के पुराने अंकों में भी उनकी रचनाएं छपी थीं। सुनील श्रीवास्तव ने जानकारी दी कि रिटायरमेंट के बाद बनवारी जी ने भोजपुरी में एम.ए. किया था। उनकी कविताएं स्वतःस्फूर्त होती थीं। वे बड़े ही सहज कवि थे। सुमन कुमार सिंह ने उन्हें आशु कवियों की परंपरा का एक सचेत कवि बताते हुए कहा कि उन्हें अपनी कविताएं याद होती थीं। मातृभाषा भोजपुरी की उनकी कविताओं में व्यंग्य व हास्य का पुट होता था, जो श्रोताओं को सहज ही आकर्षित किया करता था। 
दैनिक भास्कर 
आरा शहर में होने वाली नुक्कड़ कविता-गोष्ठियों के साथ-साथ गंभीर, विचार-गोष्ठियों, वैचारिक सेमिनारों और सांस्कृतिक आयोजनों में कवि बनवारी राम अक्सर मौजूद रहते थे। अब साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों में उनकी कमी खलेगी। 

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