(गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में 10 से 13 अगस्त तक जो कुछ घटा यह उसकी रिपोर्ट है। इसे समकालीन जनमत के अगस्त अंक में प्रकाशित किया गया था। )
दस अगस्त की सुबह 11.20 बजे बीआरडी मेडिकल कालेज के नेहरू अस्पताल में लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई का इंतजाम देखने वाले आपरेटर कृष्ण कुमार, कमलेश तिवारी, बलवंत गुप्ता लिक्विड मेडिकल आक्सीजन प्लांट पर रीडिंग लेने पहुंचे। प्लांट की रीडिंग 900 देखते ही चौंक गए। इसका मतलब था कि 20 हजार लीटर वाले आक्सीजन प्लांट में सिर्फ 900 केजी लिक्विड आक्सीजन उपलब्ध थी। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। पांच हजार तक रीडिंग पहुंचते ही लिक्विड आक्सीजन लिए टैंकर आ जाता था और प्लांट को रिफिल कर देता था। उन्होंने फौरन हाथ से बाल रोग विभाग की अध्यक्ष को पत्र लिखा और उस पर अपने हस्ताक्षर बनाए। पत्र की काॅपी प्राचार्य, बीआरडी मेडिकल कालेज से सम्बद्ध नेहरू अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक, एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष और नोडल अधिकारी एनआरएचएम मेडिकल कालेज को भी भेजी।
उन्होंने लिखा -‘ हमारे द्वारा पूर्व में तीन अगस्त को लिक्विड आक्सीजन के स्टाक की समाप्ति के बारे में जानकारी दी गई थी। आज 11.20 बजे की रीडिंग 900 है जो आज रात तक सप्लाई हो पाना संभव है। नेहरू चिकित्सालय में पुष्पा सेल्स कम्पनी द्वारा स्थापित लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई पूरे नेहरू चिकित्सालय में दी जाती है। जैसे कि-टामा सेंटर, वार्ड संख्या 100, वार्ड संख्या 12, वार्ड 6, वार्ड 10, वार्ड 12, वार्ड 14 व एनेस्थीसिया व लेबर रूम तक इससे सप्लाई दी जाती है। ‘पुष्पा सेल्स कम्पनी के अधिकारी से बार-बार बात करने पर पिछला भुगतान न किए जाने का हवाला देते हुए लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई देने से इंकार कर दिया है। तत्काल आक्सीजन की व्यवस्था न होने पर सभी वार्डों में भर्ती मरीजों की जान का खतरा ......। अत: श्रीमान जी से निवेदन है कि मरीजों के हित को देखते हुए तत्काल लिक्विड ऑक्सीज़न की आपूर्ति सुनिश्चित कराने की कृपा करें।’
‘ खतरा ’ लिखने के बाद इन आपरेटरों के हाथ कांप गए थे। वे जानते थे आक्सीजन खत्म होने का क्या अंजाम हो सकता है। शायद इसीलिए उनसे आगे कुछ लिखा नहीं गया। उन्हें उम्मीद थी कि खत पहुंचते ही साहब लोग एक्टिव हो जाएंगे और लिक्विड आक्सीजन मंगा लेंगे या उसके विकल्प में आक्सीजन सिलेण्डर की व्यवस्था कर देंगे।
लेकिन आपरेटर नही जानते थे कि एक दूसरे ढंग की खतो खिताबत भी चल रही थी। यह उन लोगों के बीच थी जो ‘आक्सीजन लेने-देने में विशेषज्ञ हैं। यह खतो खिताबत लिक्विड आक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड के बीच छह माह से चल रही थी। मसला यह था कि कम्पनी का बकाया 70 लाख तक पहुंच गया था और उसे मेडिकल कालेज की ओर से भुगतान नहीं मिल रहा था। कम्पनी कह रही थी कि स्थितियां उसके नियंत्रण से बाहर चली गई है। लिहाजा वह लिक्विड आक्सीजन सप्लाई नहीं कर पाएगी। इस मसले का हल एक ताकतवर सरकार और उसके अफसर जो गोरखपुर से लखनऊ तक बैठे थे, नहीं निकाल सके।
जो खतरा इन आपरेटरों ने देख लिया था, उसे ये सभी ताकतवर लोग बेखबर बने रहे। ये इतने बेखबर थे एक रोज पहले इसी मेडिकल कालेज में ढाई घंटे तक इंसेफेलाइटिस व अन्य रोगों से बच्चों की मौत पर मंथन करते रहे लेकिन उन्हें यह पता तक नहीं चल सका कि उनके बैठके से 100 मीटर दूरी पर आक्सीजन का मीटर शून्य की तरफ खिसकता जा रहा है। इस गहन मंथन में जादुई निष्कर्ष यह निकला था कि इंसेफेलाइटिस के लिए गंदगी जिम्मेदार है और वे गंदगी खत्म कर इसे भी खत्म कर देंगे। इसके बाद सबने स्वच्छ भारत अभियान का नारा लगाया।
दस तारीख की रात घड़ी की सुइयों ने जैसे ही साढ़े सात बजाए, लिक्विड आक्सीजन का प्रेशर कम होने का संकेत होने लगा। उस वक्त सिर्फ 52 आक्सीजन सिलेण्डर थे। उसे जोड़ा गया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 100 बेड के इंसेफेलाइटिस वार्ड में इंसेफेलाइटिस से ग्रस्त बच्चों, जन्म के वक्त संक्रमण व अन्य बीमारियों के कारण भर्ती हुए नवजात तथा वार्ड संख्या 14 में भर्ती वयस्क मरीजों की जान जाने लगी। शाम साढ़े सात बजे से 11 बजे तक आठ बच्चों की जान चली गई। अगले दिन दोपहर तक कोहराम मच गया। 24 घंटे में 25 और जाने चली गईं।
ये खबरें मीडिया के जरिए सार्वजनिक हुईं तो लोग गम में डूब गए। सोशल मीडिया उनके दुख और क्षोभ की अभिव्यक्ति का मंच बनने लगा।
और इसी वक्त वे किरदार फिर नमूदार हुए जिन्होंने इंसेफेलाइटिस के खात्मे का दो दिन पहले समाधान ढूंढ लिया था। कैमरे के चमकते फलैश के बीच कागजों को उलटते-पुलटते सबसे पहले जिले के सबसे बड़े हाकिम ने घोषणा की कि आक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई। वैकल्पिक इंताजम पूरे थे। मौतों की यह संख्या ‘ सामान्य ’ है। यहां 18-20 मौतें तो हर रोज होती रही हैं। फिर भी हम जांच करेंगे। चार अफसरों की कमेटी बना दी है। कोई जिम्मेदार पाया जाएगा तो सख्त कार्रवाई होगी। जब हाकिम यह बात कह रहे थे तो उनके कमरे के बाहर कुशीनगर जिले के रामकोला की संगीता और उसकी बेटी दहाड़े मार रो रही थीं। संगीता के सात दिन के नाती की मौत हो गई थी। बच्चा नियोनेटल वार्ड में पड़ा था। एक दिन पहले ही वह आया था। मां-बेटी की चीख डीएम के प्रेस कांफ्रेस के कमरे तक पहुंच रही थी और मीडिया को ब्रीफिंग में दिक्कत आ रही थी। दरवाजा बंद करने का आदेश हुआ लेकिन चीखें दरवाजा और मेडिकल कालेज की दीवारें पार कर अंदर पहुंचती रहीं।
अगले दिन सरकार के दो-दो मंत्री आए। आते ही वे दो घंटे तक बैठक के लिए एक कमरे में बंद हो गए। बाहर टीवी चैनलों के कैमरे उनका इंतजार कर रहे थे। इधर वार्ड में मौत का तांडव जारी था। विजयी की बेटी शांति और विजय बहादुर का बेटा रोशन की जान जा चुकी थी। डाॅक्टर इसलिए शव नहीं दे रहे थे कि वार्ड माओं की चीखों से गूंजने लगेगा और इसी दौरान मंत्री आ जाएं तो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा। टीवी वाले भी इनकी मौत का ‘ तमाशा ’ बनाएंगे।
दोनों मंत्री घंटे बैठक के बाद निकले तो एक के हाथ बहुत से कागजात थे तो दूसरे के हाथ में एक आर्डर। कागजात वाले मंत्री ने मीडिया को बताया कि मैने दो वर्ष के अगस्त महीने के रिकार्ड देखे हैं। इन महीनों में 500-600 मौतें हो जाती हैं। यह ‘ सामान्य ’ है। इस वर्ष आंकड़े बढ़े नहीं हैं। दूसरे मंत्री ने कहा कि आक्सीजन संकट में प्रिसिपल की लापरवाही है। उन्हें सस्पेंड किया जाता है। उन्होंने नौ अगस्त की मीटिंग में मुख्यमंत्री के समक्ष आक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी को भुगतान न करने का मामला उठाया नहीं था। मुख्यमंत्री इससे अवगत नहीं थे। ’
इसके बाद ही प्रिसिंपल का त्यागपत्र मीडिया में आता है जिसमें उन्होंने लिखा है कि बच्चों की मौत में उनकी कोई गलती नहीं हैं। वह बच्चों की मौत से बहुत आहत हैं। इसलिए प्रिसिंपल का पद छोड़ रहे हैं। ’
दोनों मंत्री लौट गए। फिर शाम को लखनउ में एक बार फिर सरकार मीडिया के सामने आई। सीएम बोलते हैं कि आक्सीजन का पैसा तो पांच अगस्त को भी गोरखपुर भेज दिया गया था। प्रधानमंत्री जी बच्चों की मौत से दुखी हैं। ’
विपक्षी नेताओं की गाड़ियां एक के बाद एक मेडिकल कॉलेज पहुंच रही हैं। अंदर काली वर्दीधारी कमांडो तैनात हैं। ऐसा लगता है कि कोई आतंकवादी हमला हुआ है। विपक्षी नेता संवेदना प्रकट करते हुए बाहर आते हैं। मीडिया वाले कैमरा लिए दौड़ पड़ते हैं। विपक्षी नेता की आवाज टीवी पर एयर होने लगती है- सीएम संवदेनहीन हैं। वह इस्तीफा दें।
बड़ी-बड़ी गाड़ियों, सफेद लकदक कुर्ते में लैस नेताओं के बीच में से कंधे पर अपने लाडलों का शव लादे रोती-बिलखती माएं और पिता दीखते हैं। बाबा राघवदास की प्रतिमा पर मोमबत्ती जलाने वाले आ पहुंचे हैं। तभी हवा तेज हो जाती है और सभी मोमबत्तियां एक साथ बुझ जाती हैं। रात का रिपोर्टर रात डेढ़ बजे अपनी खबर अपडेट करता है- 24 घंटे में फिर 11 बच्चों की मौत हो गई है।
13 अगस्त की सुबह बूंदाबांदी से होती है। भादो का महीना है लेकिन आसमान जमकर बरस नहीं रहा है। लगता है कि उसके पास पानी की कमी हो गई है। अचानक चैनलों के ओवी वैन तेजी से मेडिकल कालेज की तरफ भागने लगते हैं। खबर तैर जाती है कि सूबे के मुख्यमंत्री आ रहे हैं। उनके साथ नड्ढा साहब भी हैं। इंसेफेलाइटिस वार्ड में सफारी पहने सुरक्षाकर्मी कुत्तों को लेकर घूम रहे हैं जो सबको सूंघते जाते है। वार्ड के फर्श चमकाए जा रहे हैं। मीडिया को छोड़ सभी को बाहर जाने का आदेश गूंज रहा है।
दो दिन से खाली आक्सीजन प्लांट के पास एक टैंकर आ गई है। वह रात दो बजे लिक्विड आक्सीजन लेकर आई। प्लांट में आक्सीजन रिफिल हो गई है। मीटर का रीडिंग छह हजार बता रहा है।
दोपहर 12 बजे हलचल तेज हो जाती है। गेट पर मास्क लगाए डाॅक्टर मुस्तैद हो जाते हैं। सीएम और हेल्थ मिनिस्टर तेजी से वार्ड में घुसते हैं। साथ में तमाम नेता भी अंदर आ जाते हैं। अंदर पत्रकार पहले से मौजूद हैं। एक टीवी रिपोर्टर बाहर चीख रही है कि अस्पताल में इतने लोगों को नहीं जाना चाहिए। कुछ देर बाद अंदर से खबर आती है कि भीड़ के दबाव में एक दरवाजे का शीशा टूट गया है। सूचना विभाग के एक अफसर बाहर आते हैं और मीडियाकर्मियों से कहते हैं सेमिनार हाल में चलिए। वही सीएम साहब बात करेंगे। पत्रकार सेमिनार हाल की तरफ चल पड़ते हैं। तभी कुछ पत्रकारों के मोबाइल पर खबर फलैश होने लगती है कि इंसेफेलाइटिस वार्ड में सीएम भावुक हो गए। आंख पोछते देखे गए।
प्रेस कांफ्रेस में सीएम गंभीर होने के साथ दुखी नजर आ रहे हैं। वह सूचना देते हैं कि प्रधानमंत्री बच्चों की मौत से बहुत दुखी है। यह वाक्य वह कई बार रिपीट करते हैं। फिर वह कहते हैं कि इंसेफेलाइटिस के लिए उनसे ज्यादा कौन लड़ा है ? उनसे ज्यादा इस मुद्दे पर कौन संवेदनशील हैं ? यह कहते हुए उनका गला भर्रा जाता है। कुछ पत्रकार मोबाइल पर तत्काल खबर अपडेट करते हैं कि सीएम एक बार फिर भावुक हुए। वह मीडिया से अपील करते हैं- फेक खबर न चलाइए। तथ्यों पर रिपोर्ट करिए। मुख्य सचिव की रिपोर्ट आने दीजिए। जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ ऐसी सख्त कार्रवाई होगी कि नजीर बनेगी।
अब हेल्थ मिनिस्टर नड्ढा साहब बोल रहे है। वह तस्दीक करते हैं कि सीएम साहब ने इंसेफेलाइटिस के लिए सबसे ज्यादा संघर्ष किया है। वह इस बार संसद में नहीं थे तो इंसेफेलाइटिस का मुद्दा नहीं उठा। वही हर बार यह मुद्दा उठाते थे। वह घोषणा करते हैं कि वायरल रिसर्च सेंटर के लिए 85 करोड़ रूपया दिया जा रहा है।
अब पत्रकारों के सवाल पूछने की बारी है। चैनल वाले सबसे पहले सवाल पूछ रहे हैं। सवाल पूछने के पहले कई बार अपने चैनल का नाम और अपना नाम ले रहे हैं। एक-दो सवाल के बाद आक्सीजन का सवाल उठ जाता है। कई पत्रकार एक साथ सवाल पूछने लगते हैं। पीछे वाले पत्रकार सवाल पूछने के लिए आगे आते हैं तभी धन्यवाद की आवाज आती है और सीएम उठ जाते हैं। प्रेस कांफ्रेस खत्म हो जाती है।
शाम को खबर आती है कि डा. कफील इंसेफेलाइटिस वार्ड के नोडल अफसर पद से हटा दिए गए हैं। ये वही डाॅक्टर हैं जिन्हें आक्सीजन संकट के वक्त संवेदनशीलता दिखाने के लिए प्रशंसा पाई थी। अब उनके बारे में तमाम ज्ञात-अज्ञात बातें सोशल मीडिया पर आने लगती हैं। दो दिन का ‘ मीडिया का नायक ’ ‘ खलनायक ’ में बदलने लगता है। आक्सीजन, बच्चों की मौत चर्चा से गायब होने लगती है। सोशल मीडिया पर दो दिन से चुप साधे लगे गरजने लगे हैं।
सुबह की बूंदाबादी रात में तेज बारिश में बदल गई है। रात का रिपोर्टर खबर अपडेट कर रहा है- आधी रात को तमाम चिकित्सक, कर्मचारी, लिपिक मेडिकल कालेज में ही मौजूद हैं। कम्प्यूटर पर आंकड़े तैयार किए जा रहे हैं। 24 घंटे में 12 और बच्चों की मौत हो गई हैै। वार्ड संख्या 14 में दो और मरीज मर गए हैं।
(समकालीन जनमत, अगस्त 2017 अंक से)
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