[ 19अक्टूबर 1941 को यूगोस्लाव मुहिम के दौरान जर्मन सेनाएं, सुमादिया क्षेत्र के कस्बे क्रागुएवात्स पहुँची. 20 को उन्होंने गिरफ्तारियां कीं. उसी दिन फासिस्टों ने क्रागुएवात्स के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल के 800 बच्चों को शिक्षकों सहित गिरफ्तार किया और गाँव के पश्चिम छोर पर बनी एक कच्ची बैरक में बंद कर दिया. रात भर वहां रहने के बाद दूसरे रोज़ 21 अक्टूबर की सुबह 7 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच वे बच्चे 10-20, 25-40, के समूहों में अलग-अलग अपने शिक्षकों सहित भून दिए गए. एक किलोमीटर क्षेत्र में लगभग 20 सामूहिक कब्रे बनीं.
जर्मनों के जाने के बाद जब उस गाँव और दूसरे गाँवों के बचे-खुचे लोग वहां पहुंचे तो उन्हें कब्रों और सूखे खून से सनी मिट्टी के बीच कुछ चिंदियाँ मिलीं, कागज़ की. वे चिन्दियाँ चिठ्ठियाँ थी जिनमें बच्चों ने, शिक्षकों, शिक्षिकाओं ने संदेसे लिखे थे, अपने प्रियजनों को संबोधित आख़िरी संदेसे.
2 मई 1981 को जब मैं ’21 अक्तूबर स्मारक’ पहुंचा तब पहली बार दूसरे महायुद्ध में मासूमों द्वारा झेली गयी यातना का मर्म मिला. क्रागुएवात्स, यूगोस्लाविया यात्रा की सर्वाधिक तकलीफदेह लेकिन मूल्यवान अनुभूति है. अब भी जब क्रागुएवात्स याद आ जाता है तब उन आठ सौ बच्चों की आवाजें .... यह कविता उन्ही की याद में- सोमदत्त]
सोमदत्त की कविता, उन्हीं की भूमिका के साथ ---उनके कविता संग्रह ‘पुरखों के कोठार से’
काग्रुएवात्स में पूरे स्कूल के साथ तीसरी क्लास की परीक्षा
शाम सात बजे
ममा, ममा
मुझे नींद आ रही है
पूरी क्लास को नींद आ रही है
सब जम्हाई ले रहे हैं
अभी-अभी मेरा तलुआ खुजाया
कई बच्चों ने तलुए खुजाए बारी-बारी से
तूने मेरा नाम लिया क्या ! ममा
दरवाजे पर खडे होकर पुकारा या
चेरी के नीचे से ?
वहां टूटी हरी बोतल का एक टुकड़ा पड़ा था
सुबह उससे बाल-बाल बचा मैं,
तुम्हारे साथ टामी भी था क्या
मुझे पुकारता,
अलबत्ता उसकी आवाज़ मुझे नहीं सुनायी दी
क्या तुमने उसके सर के बाल खुजा दिए मेरी तरह ?
उसकी आवाज हमेशा पहचान जाता हूँ मैं,
इस वक़्त
जाने कितने कुत्तों की
वैसी आवाज़ें आ रही हैं माँ
जिन्हें, तू रोना कहती है,
आज मन गणित की क्लास में
नताशा को फिर ज्यादा नंबर मिले
मुझे उसके बाद
मिरो को मेरे बाद, आन्तिच को मिरो के बाद
पान केक संभाल कर रखना
वास्को अंकल को बहुत पसंद है
चट कर जाएंगे,
ममा मुझे नींद आ रही है
सर को गाने सूझ रहे हैं
वे अपनी कैप घुटनों पर रक्खे बैठे हैं
मूंछों के नीचे हंसते हुए
आज पहलीबार वे हम सबको बार-बार गाने सुना रहे हैं
वे कहते हैं गाओ
दूना* का गीत गाओ
बीयोग्राद** का गीत गाओ
दिन भर हमने गाया, पूरी क्लास ने, पूरी स्कूल ने,
आज पूरा स्कूल एक क्लास में लगा है
क्लास स्कूल में नहीं लगी
आठवीं क्लास वाली सिस्टर वीश्निच---
अरे, वही वाली जिनकी आँखें बहुत काली
जिनके बाल भुट्टे के सर में उगे रेशों के रंग से
अरे वही माँ, जो पिछले साल परी बनी थी वह
अचानक दौड़ती हुई हमारी क्लास में आई
बोली
बच्चों! मेरे फूलों!
उनने “मेरे फूलों” क्यों कहा ममा?
हम कोई फूल हैं?
बोली, बच्चों !
यह हमारा नया स्कूल है,
जंगल में टीन से घिरा कोई स्कूल होता है क्या ?
कल सुबह परीक्षा होगी
तडके शुरू हो जायेगी
हरेक की होगी
बच्चों की, टीचरों की, प्रिंसिपल की,
पानी पिलाने वाली बूढ़ी आया की,
स्कूल के चौकीदार सूपिच की,
घंटी बजाने वाले को भी छुट्टी नहीं मिलेगी,
सब
एक लाइन में खड़े किए जाएँगे
फिर एक-एक से सवाल होगा
सवाल बन्दूक पूछेगी
और हमें मुंह से नहीं, अपने सीने से
जवाब देने होंगे
सिर्फ़ एक सवाल किया जाएगा एक से
परचा जर्मनी से आया है
कोई हिटलर है
उसने बनाया है
ऐसा कहके वे हंसीं
हमारी पूरी क्लास हंसी
हंसते-हंसते नताशा ने मुझे गुदगुदाया
मुझे खूब हंसी आई,
टीचरों की परीक्षा की बात सभी को भाई,
परीक्षा के डर के मारे ही
प्रिंसिपल सर भी नहीं हँसे,
और वह खूसट सूपिच जो हर वक़्त हंसता है
वह भी नहीं हंसा,
और न वह घंटी बजाने वाला,
हम लोग तो खूब हँसे
सबने ताली बजाई
कि बन्दूक से हम पहली बार खेलेंगे
उसके सवाल सीने पर झेलेंगे
पापा नहीं रहेंगे
तुम नहीं रहोगी
हमीं हम रहेंगे
खूब मज़ा रहेगा
ठांय-ठांय-ठांय-ठांय होगा
परी सिस्टर ने बताया
पूरे स्कूल से एक ही सवाल पूछा जाएगा,
ऐसा क्यों है माँ कि सभी से एक सवाल पूछा जाएगा?
इसी स्कूल में
आज रात भर रहना है
और मुझे नींद आ रही है माँ
टीचर कहती है अभी ब्रेड मिलेगी
टीचर ने बताया कि तुम्हे और पापा दोनों को मालूम है
सभी के मम्मी पापा को मालूम है कि
सब रात भर यहीं रहेंगे
ममा !
ममा !
अगले बरस जब मैं चौथी में जाऊँगा
तो ये जो जर्मन हैं न लाल चौकोर निशान वाला
उसको चेरी पर चढ़कर
अपनी गुलेल से एक पत्थर जमाऊंगा,
उसने अभी थोड़ी देर पहले
दूना का गीत गाती परी को
बन्दूक के हत्थे से नीचे गिरा दिया था,
ममा उनके मुंह का खून
मेरे सामने फैला है --- उसका रंग बदल रहा है
उसे देखकर मुझे डर लग रहा है
परीक्षा देकर कल जब घर आऊँगा
सब कुछ बताऊंगा
अभी मेरा मुंह सूख रहा है
रात बारह बजे
पानी
ममा ! पानी !
मुझे प्यास लगी है
भूख भी लगी है
नताशा रो रही है, मिरो और आन्तिच भी जाग रहे हैं
घास गड़ने लगी है
प्रिंसिपल सर लिख रहे हैं
अभी एक चिड़िया उडी-
आज दोपहर भी दो कबूतर उड़ते हुए आये थे
जर्मनों ने उन्हें गिराया मार,
फिर एक झुण्ड आया
उन्हें भी उनने गिराया मार,
दो लड़कों की कमीजें उतार कर उनने आग जलाई
दोनों लडके चिल्लाए,
अभी जब वे दोनों मुझे सपने में दिखे,
नंग-धडंग, जर्मनों को नोंचते, अपनी चेरी के सामने
टामी उन्हें देख भोंका
मुझे हंसी आई
हंसा तो नींद खुली
मुझे प्यास लगी है
कहीं पानी नहीं दिखता
सुबह पांच बजे
दूसरे रोज़
ममा, पूरी क्लास अब जग गई
तब अंधेरा था
प्रिंसिपल सर ने अपनी शानदार आवाज़ में कहा
खड़े हो जाओ
दूना का गीत गाओ
सबने गाया
तभी
वह जर्मन आया, उसने प्रिंसिपल सर के कंधे पर
बन्दूक का हत्था पीछे से जमाया और हंसा
कंधे पर हाथ रखते, गिरते-गिरते बचते सर भी हँसे
सर जब हँसे
तब डर लगा मुझे
सुबह सात बजे
ममा, धूप निकली हुई है
हमारे क्लास की परीक्षा शुरू होने वाली है
दस-दस लड़कों के लिए एक बन्दूक है
नक़ल से बचाने के लिए
दूर-दूर ले जाया गया है सबको स्कूल से
हर क्लास दस-दस पेड़ दूर है
मुझे इतनी प्यास लगी है, इतनी प्यास
कि बन्दूक की परीक्षा न होती
भाग आता में
सुबह साढ़े सात बजे
ममा बन्दूक वाले सर सामने खड़े हैं चौकोर निशान पहने
बाद में हम उनसे गंदे जर्मन की शिकायत करेंगे
परी हमारे पीछे
उनने जोर से कहा—
सीने से जवाब देना है
खोलो सीने, ऊँचे उठाओ अपने सिर,
अगर थका न होता मैं
तुम्हारे पेट तक उठा लेता अपना सिर
लेकिन तीनों बटन खोल लिए हैं
ममा
परीक्षा
शुरू
हर कोई
सवाल सुनते ही दूना की तरह लहराता
धड़ से, नीचे लेट जाता है
मैं भी ऐसा ही करूँगा---- पर चीखूंगा नहीं दूसरों के जैसे
फिर दौड़ता आऊँगा, पान केक...
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* यूगोस्लाविया में बहने वाली नदी- डेन्यूब जिसे हम कहते हैं|
** यूगोस्लाविया की राजधानी- जिसे हम बेलग्रेड कहते हैं|
(इस कविता को युवा कवि ने 2014 में उपलब्ध कराया था)
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