Monday, August 1, 2016

महाश्वेता देवी की याद में शोक सभा

प्रख्यात साहित्यकार महाश्वेता देवी की याद में 29 जुलाई को आरा के साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियो और सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं ने भाकपा-माले, जिला कार्यालय के प्रांगण में एक शोक सभा आयोजित की तथा उन्हें अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित की। विगत 28 जुलाई को लंबी अस्वस्थता के बाद उनका कोलकाता में निधन हो गया।

शोक सभा में वरिष्ठ आलोचक रामनिहाल गुंजन ने कहा कि नक्सलबाड़ी आंदोलन से शुरू से ही महाश्वेता जी का गहरा जुड़ाव रहा। प्रतिक्रांतिकारी शासन व्यवस्था के खिलाफ संघर्षरत नौजवानों के नृशंस कत्लेआम के खिलाफ उन्होंने लिखा। बांग्ला साहित्य में कभी ‘पथ के दावेदार’ लिखा गया था, महाश्वेता जी ने उसके बरअक्स ‘जंगल के दावेदार’ लिखा। साहित्य में प्रायः उपेक्षित रहे आदिवासी समाज पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया।

जनवादी लेखक संघ के राज्य अध्यक्ष कथाकार नीरज सिंह ने कहा कि महाश्वेता जी ने एक भरा-पूरा, सार्थक जीवन जिया। शोषण और अन्याय पर आधारित व्यवस्था का उन्होंने आजीवन विरोध किया। वे अनवरत परिवर्तन की ताकतों के पक्ष में खड़ी रहीं। उनके चिंतन और व्यवहार में एकरूपता थी। जनपक्षधर साहित्यकारों और राजनैतिक कार्यकर्ताओं के लिए वे हमेशा आदर्श रहेंगी। वे हमारे समय की बहुत बड़ी लेखिका थीं।

प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य महासचिव प्रो. रवींद्रनाथ राय ने कहा कि महाश्वेता जी का ताउम्र संघर्षशील वर्गों से सरोकार रहा। जनांदोलन की शक्तियों और वामपंथियों के लिए उनका साहित्य हमेशा उत्पे्ररक रहेगा। वे एक एक्टिविस्ट साहित्यकार के रूप में याद की जाएंगी।

जसम के राष्ट्रीय सहसचिव कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने कहा कि महाश्वेता देवी जनमुक्ति के लिए जारी संघर्ष की प्रतीक थीं। उन्होंने आजीवन साम्राज्यवाद, सामंतवाद और वर्गीय उत्पीड़न का विरोध किया। वे एक एक्टिविस्ट कथाकार थीं जिनकी कथा-भूमि के आधार आदिवासी और दलित समदाय के लोग थे।

भाकपा-माले के जिला सचिव का. जवाहरलाल सिंह ने महाश्वेता जी को एक महान क्रांतिकारी साहित्यकार के तौर पर याद करते हुए कहा कि उन्होंने हमेशा जनता के अंदर मौजूद प्रतिरोध की क्षमता को सामने लाने की कोशिश की। गरीब, भूमिहीन, सर्वहारा, आदिवासी, स्त्री के हक-अधिकार के पक्ष में लिखा। आज जब अपने जल, जंगल, जमीन से आदिवासियों और किसानों को सरकार पूरी बर्बरता के साथ बेदखल कर रही है, जब तमाम लोकतांत्रिक आंदोलनों पर हमले हो रहे हैं, तब सांप्रदायिक-कारपोरेटपरस्त-फासिस्ट सत्ता के खिलाफ समझौताविहीन संघर्ष चलाना ही महाश्वेता जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

कवि सुमन कुमार सिंह ने ‘जंगल के दावेदार’, ‘झांसी की रानी’, ‘चोट्टी मुंडा और उनका तीर’, ‘हजार चौरासी की मां’ और ‘मास्टर साब’ जैसे उपन्यासों की चर्चा करते हुए कहा कि उनकी पीढ़ी को जनपक्षधर साहित्य-संस्कृतिकर्म और जनराजनीति की परंपरा से जोड़ने में महाश्वेता जी के साहित्य की अहम भूमिका रही है। 
शोक सभा की शुरुआत संचालक सुधीर सुमन द्वारा पढ़े गए शोक-प्रस्ताव से हुई। शोक-प्रस्ताव में कहा गया कि उनके ज्यादातर बहुचर्चित उपन्यासों और कहानियों में आदिवासियों, भूमिहीन किसानों, दलितों और स्त्रियों की जिंदगी, उनका जुझारू संघर्ष और बेमिसाल प्रतिरोध ही केंद्र में रहे। उन्होंने 1857 के महासंग्राम से भी संबंधित तीन उपन्यास लिखे। भोजपुर आंदोलन के नेतृत्वकारी मास्टर जगदीश और उनके साथियों पर लिखे गए उनके उपन्यास ‘मास्टर साब’ और उसके नाट्य मंचन को भी याद किया गया। यह भी चिह्नित किया गया कि जन संस्कृति मंच से जुड़ी दो नाट्य संस्थाओं- युवानीति और हिरावल ने उनके उपन्यास ‘हजार चौरासी की मां’ का भी बेहद सफल मंचन किया था। इस संयोग का जिक्र भी किया गया कि जिस रोज भाकपा-माले के संस्थापक महासचिव का. चारु मजुमदार का शहादत दिवस मनाया जा रहा था, उसी दिन महाश्वेता जी ने आखिरी सांस ली। शोक प्रस्ताव में उनको नक्सलबाड़ी विद्रोह और क्रांतिकारी वामपंथी आंदोलन का विशिष्ट रचनाकार बताया गया। बुद्धिजीवियों और नौजवानों से उनकी जो अपेक्षाएं थीं कि वे गांवों में जाएं और किसानों को सिखाने नहीं, बल्कि उनसे सीखने जाएं, इसकी भी चर्चा की गई। उनके संपादन में निकली पत्रिका ‘वर्तिका’ के विशेषांकों के महत्व को रेखांकित किया गया। बंधुआ मजूदरों, लोधा और खेड़िया शबर आदिवासियों के बीच किए गए उनके सामाजिक कार्यों को भी याद किया गया। इसे भी खास तौर पर चिह्नित किया गया कि वे अपने उपन्यासों और कहानियों को लिखने के लिए काफी रिसर्च करती थीं। उनके निधन को भारतीय साहित्य और परिवर्तकामी वामपंथी-लोकतांत्रिक आंदोलनों के लिए बड़ी क्षति बताया गया। 
अंत में दो मिनट का मौन रखकर साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने अपनी शोक-संवेदना व्यक्त की।

शोकसभा में भाकपा-माले के नगर सचिव का. दिलराज प्रीतम, वरिष्ठ माले नेता का. सिद्धनाथ राम, अखिल भारतीय ग्रामीण खेत मजदूर सभा के जिला सचिव का. कामता प्रसाद सिंह, माले नेता का. क्यामुद्दीन, का. हरेंद्र जी, युवा बुद्धिजीवी आशुतोष कुमार पांडेय, एपवा नेता इंदु कुमारी, आइसा के राज्य सचिव अजित कुशवाहा, इंकलाबी नौजवान सभा के राज्य अध्यक्ष राजू यादव, माले जिला कार्यालय सचिव अशोक कुमार सिंह और जितेंद्र कुमार, आइसा नेता शिवप्रकाश रंजन, संदीप, विष्णु पासवान, प्रमोद रजक, मिथिलेश कुमार, जोगिन्दर समेत कई लोग मौजूद थे।

No comments:

Post a Comment