लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों का कन्वेंशन संपन्न
वामपंथी दलों के उम्मीदवारों के समर्थन की अपील

प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय समिति के सदस्य प्रसिद्ध आलोचक खगेंद्र ठाकुर ने कहा कि वामपंथ ने इस देश में अपने संघर्षों के जरिए भूमि सुधार कानून, बंटाईदारी कानून समेत कई जनपक्षीय कानूनों को बनाने में अपनी ऐतिहासिक भूमिका अदा की है। वामपंथी दलों की एकता एक ऐतिहासिक घटना है, इससे वामपंथी कार्यकताओं में काफी उत्साह नजर आ रहा है। उन्होंने साहित्यकारों से अपील की, कि वे राजनीतिक विषयों पर भी लेख लिखें। उन्होंने अपेक्षा जाहिर की, कि वे वामपंथ के पक्ष में भी लेख लिखेंगे।
जनवादी लेखक संघ, बिहार के राज्य अध्यक्ष प्रो. नीरज सिंह ने कहा कि इस चिरप्रतीक्षित घड़ी का बहुत दिनों से इंतजार था। इस देश में तो लेखक प्रायः वामपंथी ही रहे हैं। वामपंथी दलों की एकता न होने से सबसे ज्यादा चिंता उन्हें ही होती थी। इसी कारण चुनाव के वक्त लेखक अक्सर धर्मसंकट में पड़ जाते थे, पर इस बार कोई धर्मसंकट नहीं है। वामपंथी दलों की एकजुटता से लेखक बहुत उत्साहित हैं।
प्रलेस के राज्य सचिव प्रो. रवींद्रनाथ राय ने कहा कि लेखक-संस्कृतिकर्मियों की एकता सिर्फ चुनाव के लिए नहीं बनी है। हमें जनांदोलनों के करीब होना जाना होगा, विकल्प बिना संघर्ष के नहीं पैदा हो सकता। जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा के राज्य महासचिव अशोक मिश्रा ने कहा कि बिहार में सरकार किसी की बने, लेखक, संस्कृतिकर्मियों और बुद्धिजीवियों का एकताबद्ध संघर्ष जारी रहेगा। पैगाम कल्चरल सोसाइटी के मणिकांत पाठक ने वामपंथी कार्यकर्ताओं की उन्नत रुचि, उन्नत नैतिकता और ईमानदारी की चर्चा की।
उपरोक्त वक्ताओं ने संयुक्त रूप से कन्वेंशन की अध्यक्षता की। संचालन जन संस्कृति मंच के राज्य सचिव सुधीर सुमन ने किया।

वरिष्ठ आलोचक प्रो. तरुण कुमार ने कहा कि देश की बहुत बड़ी आबादी को भय की मानसिकता में धकेला जा रहा है। यूआर अनंतमूर्ति के देहांत के बाद यहां जश्न मनाया गया। ऐसी अमानुषिकता बेहद चिंतित करने वाली बात है। एक समुदाय पर आबादी बढ़ाने का आरोप लगाकर उन्हंे दंडित करने को कहा जा रहा है। जैनियों और ईसाईयों को भी प्रताड़ित किया जा रहा है। ऐसे माहौल में लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यांे के लिए वामपंथी दलों का एक होना बहुत उम्मीद बंधाता है। इस चीज की लंबे समय से प्रतीक्षा थी।
चर्चित आलोचक कर्मेंदु शिशिर ने कहा कि अभी का समय जिस रूप में है, वैसा पहले कभी नहीं था। आज का पूंजीवादी क्लासिक पूंजीवाद नहीं है। तकनीक और प्रबंधन ने उसे बदल दिया है। उसे प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा चाहिए। वह खतरनाक इच्छाओं के साथ विकसित हो रहा है। कांग्रेस और भाजपा उसी पूंजीवादी शासकवर्ग के चाकर हैं। भाजपा भारत की बुनियाद और जनता द्वारा सदियों में गढ़े गए मानवीय मूल्यों पर हमला कर रही है, उसका मजबूत प्रतिकार जरूरी है।
शिक्षाविद् मो. गालिब ने कहा कि एक ख्वाब जो तामिर ले रहा है, वह रंग दिखलाएगा, इसका पूरा यकीन है। पत्रकार कमलेश ने कहा कि नीतीश कुमार का शासन दमन के मामले में भाजपा की सरकारों से कतई भिन्न नहीं है। अगर नीतीश दुबारा शासन में आए, तो दमन और बढ़ेगा। एक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि बिहार के पंद्रह जिलों में वामपंथ की मजबूत दावेदारी होगी। 12 जिलों में वे चुनाव को दो धु्रवीय नहीं रहने देंगे।
डाॅ. पीएनपी पाल ने इस पर सवाल उठाया कि कभी वामपंथ की विकल्प पेश करने की जो स्थिति थी, वह क्यों खत्म हो गई। वह सिकुड़ते-सिकुड़ते हाशिये पर क्यों चला गया, इस पर गंभीरता से सोचना होगा। भारत की जनता अब भी बेहतर विकल्प चाहती है। वामपंथ को वह विकल्प बनने की कोशिश करनी चाहिए।
कवि तैयब हुसैन, कोआॅर्डिनेशन फाॅर यूनियन एंड एसोसिएशन, बिहार के संयोजक मंजुल कुमार दास, चर्चित अधिवक्ता उमाकांत शुक्ल, मदरसा शिक्षक संघ के महासचिव सैयद मोहीबुल हक, कहानीकार अनंत कुमार सिंह, भोजपुरी साहित्य के विद्वान नागेंद्र प्रसाद सिंह, चर्चित मगही कवि घमंडी राम, बांग्ला कवि विद्युत पाल आदि ने भी कन्वेंशन को संबोधित किया।

इस कन्वेंशन ने आगामी विधानसभा चुनाव में वामपंथी पार्टियों के उम्मीदवारों के समर्थन की अपील के प्रस्ताव को पारित किया। इस अपील का पाठ जलेस के राज्य सचिव विनीताभ ने किया।
प्रसिद्ध रंगकर्मी मलय श्री हाशमी, अर्थशास्त्री नवल किशोर चैधरी, नटमंडप के जावेद अख्तर खान ने भी इस कन्वेंशन के प्रति अपनी एकजुटता का इजहार किया।
इस मौके पर कन्वेंशन से प्रसिद्ध मार्क्सवादी शिक्षक का. विष्णुदेव सिंह के निधन पर शोक जाहिर किया गया। कन्वेंशन ने प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता जाॅन दयाल को दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा सोशल साइट पर धमकी देने और गालीगलौज करने की तीखी भर्त्सना की।
धन्यवाद ज्ञापन प्रलेस के सुमंत जी ने किया।
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