Sunday, May 18, 2014

प्रो. जी. एन. साईं बाबा को अविलम्ब रिहा करो ! : जसम

9 मई को रामलाल आनंद कालेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) के प्रो. जी. एन. साईं बाबा को महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने के बाद से नागरिक समाज, छात्रों और शिक्षकों द्वारा इस कार्रवाई का विरोध, उनकी रिहाई की मांग और उनकी शारीरिक स्थिति को देखते हुए उन्हें दवा, चिकित्सा और परिचारक उपलब्ध कराने तथा हिरासत में उनके रहने के लिए उपयुक्त स्थान को सुनिश्चित करने आदि की मांगें अब तक अनसुनी की गई हैं. पुलिस की कार्रवाई न केवल अलोकतांत्रिक, बल्कि अमानवीय भी है. आश्चर्य है कि दिल्ली विश्विद्यालय शिक्षक संघ द्वारा इस गिरफ्तारी के पुरजोर विरोध के बाद विश्विद्यालय प्रशासन ने बजाय शिक्षकों का साथ देने के आनन फानन में प्रो. साईं बाबा को ही सेवा से निलंबित कर दिया!
ज्ञातव्य है कि श्री साईं बाबा वर्षों से व्हील चेयर पर हैं. खुद से चलने -फिरने की स्थिति में नहीं हैं. इन स्थितियों में भला वे कौन सा ऐसा अपराध कर सकते हैं कि महाराष्ट्र पुलिस उन्हें आतंकवाद निरोधक क़ानून की धाराओं में गिरफ्तार करने को वैध ठहरा रही है? अतीत में डा. बिनायक सेन और सीमा आज़ाद को भी क्रमशः छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में माओवादियों के साथ सम्बन्ध रखने का आरोप लगा कर गिरफ्तार किया गया था. पुलिस आज तक यह साबित नहीं कर पाई कि आखिर उन्होंने क्या अपराध किया था? उन्हें क्रमशः सर्वोच्च न्यायालय तथा इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ज़मानत पर रिहा किया. प्रो. साईं बाबा की तरह ही चालीस महीने पहले दलित अधिकार और सामाजिक समानता के मुद्दों से संबद्ध 'विद्रोही' पत्रिका के संपादक सुधीर ढवले की भी माओवादियों से सम्बन्ध के आरोप में यूएपीए के तहत गिरफ्तारी की गयी थी. अब कोर्ट ने उन्हें रिहा कर दिया है और कहा है कि उनके पास से पुलिस ने जो साहित्य जब्त किया था वह इंटरनेट पर मौजूद है. प्रसंगवश यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पूर्व गांधीवादी कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय भी राजद्रोह का मुकदमा उत्तर प्रदेश में झेल चुके हैं. वास्तव में गरीबों और आम जन के हक़-हुकूक के पक्ष में बोलनेवालों, गरीबी, भूख और शासकीय दमन का विरोध करनेवालों को खामोश करने का यह एक स्थापित ढर्रा सा बन गया है. सीमा आज़ाद को ज़मानत देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि पुलिस द्वारा जो दस्तावेज़ उनके पास से बरामद किए गए वे मूलतः विचारधारा का प्रचार और दृष्टिकोण का प्रसार करने के निमित्त थे जिन्हें राजद्रोह का प्रमाण नहीं माना जा सकता. विचारों की स्वतंत्रता पर हमले का आलम यह है कि फेसबुक टिप्पणियों और ट्विटर पर भेजे संदेशों तक पर पुलिसिया कार्रवाई की घटनाएं अब आम हो चुकी हैं, जबकि दूसरी ओर अभी हाल में संपन्न हुए आम चुनावों में एक से एक भयानक समाज-विरोधी भड़काऊ भाषण देनेवाले तत्व न केवल क़ानून की गिरफ्त से बाहर रहे, बल्कि बाकायदा निर्वाचित होकर क़ानून-निर्माता बन बैठे हैं.  
यह भी आश्चर्य की बात है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने प्रो. जी. एन. साईं बाबा की मनमानी गिरफ्तारी का संज्ञान नहीं लिया. जन संस्कृति मंच प्रो. जी. एन. साईं बाबा की गिरफ्तारी के ज़रिए नागरिक अधिकारों पर हमले की इस कार्रवाई की घोर भर्त्सना करता है और उन्हें अविलम्ब रिहा करने की मांग करता है. जसम तमाम नागरिकों से इस कार्रवाई का अपने स्तर से हर संभव विरोध की भी अपील करता है.
(जन संस्कृति मंच की ओर से सुधीर सुमन, राष्ट्रीय सह सचिव द्वारा जारी) 

No comments:

Post a Comment