Thursday, August 29, 2013

भारत का जनतंत्र एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है: जितेंद्र कुमार

आरा में ‘सामंती-सांप्रदायिक-कारपोरेट फासीवाद विरोधी मार्च’

26 अगस्त को भोजपुर जिला मुख्यालय आरा में जसम, आइसा-इनौस और ऐपवा की ओर से ‘सामंती-सांप्रदायिक-कारपोरेट फासीवाद विरोधी मार्च’ निकाला गया। बलात्कार के आरोपी आसाराम बापू तथा अंधविश्वासविरोधी आंदोलन के कार्यकर्ता डा. नरेंद्र दाभोलकर के हत्यारों की गिरफ्तारी के नारों के साथ मार्च की शुरुआत हुई। बिहार में बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं और दलित उत्पीड़न की घटनाओं के खिलाफ भी नारे लगे। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति और कारपोरेट फासीवाद की राजनीति को शिकस्त देने के नारे भी गूंजे। जिला समाहरणालय से शुरू हुआ मार्च आरा रेलवे स्टेशन में पहुंचकर एक सभा में तब्दील हो गया, जिसे संबोधित करते हुए जसम के राष्ट्रीय सहसचिव कवि जितेंद्र कुमार ने एक ओर आसाराम बापू के आश्रम में जादू टोना के नाम पर बच्चों की हत्या की जाती है और उनको कोई दंड नहीं मिलता, दूसरी ओर नरेंद्र दाभोलकर, जो अंधविश्वास और काला जादू आदि के खिलाफ लोगों को सचेत करते है, तो उनकी हत्या हो जाती है और उन्हें धमकी देने वाले हिंदुत्ववादी संगठनों और हत्यारों को पकड़ा तक नहीं जाता। महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिए देश में इतने जबर्दस्त आंदोलन हो रहा है, इसके बावजूद आसाराम बापू जैसों के खिलाफ सरकारें कुछ नहीं करती। इससे जाहिर होता है कि भारत का जनतंत्र एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है।

आइसा के बिहार राज्य सचिव अजीत कुशवाहा ने कहा कि जिस बलात्कारी संत के खिलाफ सरकारें और भाजपा जैसी पार्टी खड़ी है, उनके कुकृत्य के खिलाफ आरोप लगाना बेहद हिम्मत का काम है और यह काम एक लड़की ने किया है, इसके लिए उसका सम्मान किया जाना चाहिए। बलात्कार की घटनाएं हों या भ्रष्टाचार की सच्चाई या सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की साजिशें, भाजपा-कांग्रेस और उनके सहयोगी दल इसमें पूरी तरह लिप्त हैं। गठबंधन टूटने के बाद अकेले बिहार में सोलह जगह दंगा भड़काने की कोशिशें हुई हैं। अजीत ने उत्तर प्रदेश में भाजपा-सपा की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति पर भी सवाल उठाया।

समकालीन जनमत के संपादक सुधीर सुमन ने कहा कि भारत की प्रगतिशील-जनवादी साहित्य की जो विरासत है, वह भी हमें प्रेरित कर रही है कि हम देश में अंधविश्वास और सांप्रदायिकता को संरक्षण और बढ़ावा देने वाली ताकतों का विरोध करें। देश के शासकवर्ग ने एक ओर जनता की जिंदगी के संकटों को बढ़ाकर उन्हें ढोंगी, धनलोलुप और मनोविकृति के शिकार बाबाओं की शरण में धकेल दिया है, वहीं दूसरी ओर इन बाबाओं को अपनी सांप्रदायिक राजनीति व काले धन का केंद्र भी बना रखा है, इसी कारण इनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती। जब इस देश के किसान आत्महत्या करते हैं, तब यहां की सरकारें बाबाओं को आध्यात्मिक प्रचार के लिए धन देती हैं। महाराष्ट्र तो जैसे इस तरह की प्रवृतियों का गढ़ बना हुआ है, जहां अंधविश्वास विरोधी आंदोलन इसके खिलाफ खड़ा है। डा. दाभोलकर इस आंदोलन के कार्यकर्ता थे, जिन्होंने सूखे से ग्रस्त इलाके में आसाराम बापू द्वारा होली खेलने के लिए पानी के इस्तेमाल के खिलाफ सफल प्रतिवाद किया था। आसाराम जिस पर पहले भी जमीन लूट और बच्चों और भक्तों की हत्या के आरोप लगे हैं और ताजा मामले में उस पर बलात्कार का आरोप लगा है, उसके खिलाफ इस देश की पुलिस और सरकारें कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं कर रही हैं। दूसरी ओर डा. दाभोलकर के हत्यारे भी अब तक पुलिस की पकड़ से बाहर है। हद यह है कि डा. दाभोलकर की याद में आयोजित सभा में दलित उत्पीड़न और कारपोरेट लूट व भ्रष्टाचार के खिलाफ गीत गाने और नाटक करने वाले कबीर कला मंच के कलाकारों की प्रस्तुति के बाद आयोजक एफटीआईआई, पूणे के छात्रों पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के गुंडे हमला करते हैं और पुलिस उल्टे घायल छात्रों पर ही गैरकानूनी गतिविधि का आरोप मढ़ देती है।

सुधीर सुमन ने कहा कि संघ गिरोह के गुंडे जो कारपोरेट लूट के लिए जारी आपरेशन ग्रीन हंट का समर्थन करते हैं, उन्हें तो कांग्रेस-भाजपा दोनों की सरकारों ने देश की राजधानी से लेकर पूरे देश में उत्पात मचाने की छूट दे रखी है, लेकिन जो नौजवान-संस्कृतिकर्मी प्राकृतिक संसाधनों की लूट और शासकवर्ग के विनाशकारी विकास मॉडल, सर्वव्यापी भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक-जातिवादी उत्पीड़न का विरोध कर रहे हैं, उन्हें जेलों में डाला जा रहा है। जेनयू के छात्र और संस्कृतिकर्मी हेम मिश्रा व आदिवासी युवक पांडु नरोटे व महेश तिर्की की गढ़चिरौली में गिरफ्तारी इसी का उदाहरण है। ये सारी घटनाएं भले ही अलग-अलग हों, पर इनके बीच गहरा संबंध है। देश की शासकवर्गीय पार्टियों में जैसे इसकी होड़ सी लगी है, कि कारपोरेट का हित साधने के लिए कौन तानाशाही की किस हद तक जा सकता है। इसलिए इस वक्त कारपोरेट फासिज्म के खिलाफ जनता के विक्षोभ और संघर्षों की एकजुटता बेहद जरूरी है।

कवि सुनील चौधरी ने बिहार के खास संदर्भ में कहा कि यहां कोई सुशासन नहीं है। मजदूरों का पलायन आज भी जारी है। बलात्कार की घटनाएं बिहार में भी लगातार बढ़ी हैं। हर गरीब को आवास के लिए 3 डिसमिल जमीन देने के सरकारी वादे को सरकार भूल गई है। मनरेगा के तहत सबसे कम काम बिहार में हुआ है। ऐसे में जो लोग जमीन के लिए आंदोलन कर रहे हैं, उन्हें यह सरकार जेल में डाल दे रही है। बिहार में भी विकास का कोई जनपक्षीय मॉडल नहीं है। गरीब मेहनतकश जनता का संशय वाजिब है कि विशेष राज्य का दर्जा अगर मिला, तो उसका उन्हें फायदा नहीं होगा। चूंकि जनता के सवालों का समाधान सरकार के पास नहीं है, इसीलिए भाजपा-जद-यू दोनों चाहते हैं कि राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो, ताकि जनता के बुनियादी सवालों से बचा जा सके।

जनकवि निर्मोही ने सभा के दौरान ‘कारपोरेट से कइले बा इयारी, ए भइया कर लड़े के तैयारी’ गीत को सुनाया। सभा का संचालन अजीत कुशवाहा ने किया। 

इस मौके पर जसम के राज्य अध्यक्ष वरिष्ठ आलोचक रामनिहाल गुंजन, इनौस के सत्यदेव, युवानीति के अरुण प्रसाद, राजीव रंजन, आइसा के जिला सचिव शिवप्रकाश रंजन, शमशाद, मनोज, अभय, का. रामकिशोर राय, का. हरेंद्र आदि के साथ अपने हक अधिकार के लिए आंदोलनरत गरीब-मेहनतकश महिलाएं भी मौजूद थीं।

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